सोमवार, 31 दिसंबर 2012

नब बर्ष


 



नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।




मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत  और रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो  निशा में ना  अँधेरा हो

नब बर्ष आज आया है , जलाओ प्रेम के दीपक
गर जलाएं  प्रेम के दीपक  तो  अँधेरा दूर हो जाए
गर रहें हम प्यार से यारों और जीएं और जीने दें
अहम् का टकराब  पल में ही यारों चूर हो जाए

मनाएं हम सलीखें  से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी  बो भी अपने हैं
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं


काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 23 दिसंबर 2012

भारत और दिल्ली की जनता एक बार फिर से लाचार











 










चलती  बस में लड़की के साथ  बलात्कार 
पुलिस प्रशाशन की नाकामी और हार 
युबा और युब्तियों की हमदर्दी और न्याय के लिए प्रदर्शन 
सोनिया राहुल शिंदे शीला पुलिस कमिश्नर  का  निन्दनीय  आचरण 
हमेशा की तरह आन्दोलन को दवाने की साजिश 
पुलिस का ब्यबहार  गैरजरूरी और शरमशार 
भारत और दिल्ली की जनता एक बार फिर से लाचार .



अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं


नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे  ढह गए हैं 


 

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

ग़ज़ल




















आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है

सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है

खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है

मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है

आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रशं लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है

चाँद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
आज हम आबाज देते की बेचना जमीर है 



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

गर कोई देखना चाहें





















कैसी सोच अपनी है ,किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें वतन  मेरे वो  आ जाये

तिजोरी में भरा धन है ,मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी  भुखमरी में क्यों  जीबन बीतता जाये

ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें

कभी बाँटा  धर्म ने है ,कभी  जाति में खो जाते
क्यों हमारें रह्नुमाओं का, असर सब पर नजर आये

ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा तंत्र है   यारों , ये जल्दी से गुजर जाये


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

मेरे मालिक मेरे मौला

















मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये

तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें

कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये

ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

जिंदगी

जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।


किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

रहमत






रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता.

मर्जी बिन खुदा यारो तो   जर्रा हिल नहीं सकता 
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता...

मन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लो 
जियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लो 

मर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने सपने हों
रहमत जब खुदा की हो तो बेगाने भी अपने हों 




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

आज छह दिसंबर है





















आज छह दिसंबर है
1992
की याद :


अपना भारत जो दुनिया का सुंदर चमन
सारी दुनिया से प्यारा और न्यारा बतन
ये मंदिर भी अपना और मस्जिद भी अपनी
इनसे आशा की किरणे बनी पाई गयीं

हम तो कहते कि मंदिर में रहता खुदा
जो मंदिर में है न बो इससे जुदा
नाम लेते ही अक्सर असर ये हुआ
बातें बिगड़ी छड़ों में बनाई गयीं

कोई कहता क़ि मंदिर बनेगा यहाँ
कोई कहता कि मस्जिद रहेगी यहाँ
दूरियां बे दिलों की बढ़ातें गए
और कह कह के दहशत बढ़ायी गयी

तुम देखो की भारत में क्या हो रहा
आज राम रहीमा भी क्या सो रहा
अपने हाथों बनाया सजाया जिसे
उसे जलाकर दिवाली मनाई गयी

अपने साथी सखा जो दिलों में रहे
प्यार उनसे हमेशा हम करते रहें
उनके खूनों से हाथों को हमने रँगा
इस तरीके से होली मनाई गयी

आज सूरत की सूरत को क्या हो गया
देखो अब्दुल का बालिद कहाँ खो गया
अब सीता अकेली ही दिखती है क्यों
आज जीबित चिता ही जलाई गयी

अब तो होली में आता नहीं है मजा
ईद पर भी ना हम तो गले ही मिले
आज अपना हमें कोई कहता नहीं
प्यार की सारी बातें भुलाई गयीं

आज मंदिर में रामा भी दिखता नहीं
मुझे मेरा खुदा भी है रूठा हुआ
बो युक्ति जो हमको थी बंधे हुयी
पल भर में सभी बे मिटाईं गयीं

हमको दुनिया में हर पल तो रहना नहीं
खाली हाथो ही जाना पड़ेगा बहां
देख दुनिया हँसी अपनी बुद्धि फसें
सो दुनियां हँसी यूँ बनाई गयीं


काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

ग़ज़ल:सुन्दर हिंदी प्यारी हिन्दी







आप के लिये 
रचनाकार श्री मदन मोहन सक्सेना जी की एक ग़ज़ल: 


चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है..

मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको ही
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है

क्या बताये आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
किसी पत्थर की मूरत पर ये अक्सर मचल जाता

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है


मदन मोहन सक्सेना:

दुनियां का खेला



ये पैसों की दुनिया ये काँटों की दुनिया
यारों ये दुनिया जालिम बहुत है
अरमानो की माला मैनें जब भी पिरोई
हमको ये दुनिया तो माला पिरोने नहीं देती..

ये गैरों की दुनियां ये काँटों की दुनिया
दौलत के भूखों और प्यासों की दुनिया
सपनो के महल मैंने जब भी संजोये 
हमको ये दुनिया तो सपने संजोने नहीं देती..

जब देखा उन्हें और उनसे नजरें मिली 
अपने दिल ने ये माना की हमको दुनिया मिली
प्यार पाकर के जब प्यारी दुनिया बसाई
हमको ये दुनिया तो उसमें भी सोने नहीं देती..

ये काँटों की दुनिया -ये खारों की दुनिया
ये बेबस अकेले लाचारों की दुनिया
दूर रहकर उनसे जब मैं रोना भी चाहूं
हमको ये दुनिया अकेले भी रोने नहीं देती..


ये दुनिया तो हमको तमाशा ही लगती
हाथ अपने   हमेशा निराशा ही लगती
देख दुनिया को जब हमने खुद को बदला 
हमको ये दुनिया तो बैसा भी होने नहीं देती... 

काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

पोस्ट (सुन्दर हिंदी प्यारी हिंदी )




मुश्किल

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल

ख्बाबो और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल ..

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल 
मदन मोहन सक्सेना 
पोस्ट (सुन्दर हिंदी प्यारी हिंदी )

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

बहुत मुश्किल
























अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल

ख्बाबो और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल ..

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल


मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

सदन कुश्ती के मैदान हो गए

कैसा दौर चला है अब ये
सदन कुश्ती के मैदान हो गए




कहते हैं कि संसद लोकतंत्र का मंदिर है लेकिन आजकल क्या सत्ता पक्ष और बिपक्ष अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए संसद की कर्यबाही चलने ही नहीं देना चाहतें .किसी न किसी मुद्दे पर संसद में आजकल ये देखने को मिलता है कि पुरे दिन संसद में काम ही नहीं हो पाया।
एक मजदूर या फिर एक कर्मचारी काम नहीं करता है तो उसका बेतन काट लिया जाता है। किन्तु टैक्स देने बाली आम नागरिक के पैसों से चलने बाली कर्यबाही को अबरुध्ह करने का कौन दोषी है। ये विचार्रीय प्रशं है .जन मुद्दे पर बहस तो सुनने को नहीं मिलती आज तो ये ही सुनने को मिलता है।
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सदन  की कार्यवाही शुरु की जाये.
कृपया बैठ जाइये..आप बैठ जाइये...उनको बोलने दीजिये.
अरे बैठ तो जाइये... बोलने दीजिये..
सदन की कार्यवाही २ बजे तक के लिये स्थगित की जाती है. 
सदन  की कार्यवाही शुरु की जाये.
बैठ जाइये..... बैठ जाइये..
सदन की कार्यवाही फिर कल तक स्थगित की जाती है





मदन मोहन सक्सेना