बुधवार, 14 मार्च 2012

ग़ज़ल




जब अपने चेहरे से नकाब हम हटाने लगतें हैं 
अपने चेहरे को देखकर डर जाने लगते हैं

बह हर बात को मेरी दबाने लगते हैं
जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं

जिस गलती पर हमको बह समझाने लगते है.
बही गलती को फिर बह दोहराने लगते हैं

आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने लगतें हैं
शायद दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं

दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने  लगतें हैं
मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं 

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

अपना भारत






















अपना भारत जो दुनिया का सुंदर चमन 
सारी दुनिया से प्यारा और न्यारा बतन
ये मंदिर भी अपना और मस्जिद भी अपनी 
इनसे आशा की किरणे बनी पाई गयीं 

हम तो कहते कि मंदिर में रहता खुदा 
जो मंदिर में है न बो इससे जुदा 
नाम लेते ही  अक्सर असर ये हुआ
बातें बिगड़ी छड़ों   में बनाई गयीं 

कोई कहता क़ि मंदिर बनेगा यहाँ
कोई कहता कि मस्जिद रहेगी यहाँ
दूरियां बे दिलों की बढ़ातें गए 
और कह कह के दहशत बढ़ायी गयी 

तुम देखो की भारत में क्या हो रहा 
आज राम रहीमा भी क्या सो रहा 
अपने हाथों बनाया सजाया जिसे 
उसे जलाकर दिवाली मनाई  गयी

अपने साथी  सखा जो दिलों में रहे 
प्यार उनसे हमेशा हम करते रहें 
उनके खूनों से  हाथों को हमने रँगा
इस तरीके से होली मनाई गयी

आज सूरत की सूरत को क्या हो गया 
देखो अब्दुल का बालिद कहाँ खो गया 
अब सीता अकेली ही दिखती है क्यों 
आज जीबित चिता ही जलाई गयी

अब तो होली में आता नहीं है मजा 
ईद पर भी   ना हम तो गले ही मिले
आज अपना हमें कोई कहता नहीं
प्यार की सारी बातें भुलाई गयीं 

आज मंदिर में राम भी दिखता नहीं 
मुझे मेरा खुदा भी है रूठा  हुआ
बो युइक्ती जो  हमको थी बंधे हुयी
पल भर में सभी बे मिटाईं गयीं

हमको दुनिया में हर पल तो रहना नहीं 
खली हाथो ही जाना पड़ेगा बहां
देख दुनिया हँसी अपनी बुध्हि फसें 
सो दुनियां हँसी यूँ बनाई गयीं   

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना