मंगलवार, 22 मई 2012

ग़ज़ल




क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..

एक जमी बक्शी  थी कुदरत ने हमको यारो लेकिन
हमने सब कुछ बाट दिया मेरे में और तेरे में 

आज नजर आती मायूसी मानाबता के चहेरे पर  
अपराधी को सरण मिली है आज पुलिस के डेरे में

बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में.
 
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

1 टिप्पणी:

  1. जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
    अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में.

    Aap ki ghajal bahut hi khoobsurat hai

    जवाब देंहटाएं