रविवार, 12 अगस्त 2012

आजादी और हम





























दो चार बर्ष की बात नहीं अब अर्ध सदी गुज़री यारों 
हे भारत बासी मनन करो क्या खोया है क्या पाया है 

गाँधी सुभाष टैगोर  तिलक ने जैसा भारत सोचा था 
भूख गरीबी न हो जिसमें , क्या ऐसा भारत पाया है 


क्यों घोटाले ही घोटाले हैं और जाँच चलती रहती 
पब्लिक भूखी प्यासी रहती सब घोटालों की माया है 

अनाज भरा गोदामों में और सड़ने को मजबूर हुआ 
लानत है ऐसी नीती पर जो भूख मिटा न पाया है 

अब भारत माता लज्जित है अपनों की इन करतूतों पर 
राजा ,कलमाड़ी ,अशोक को क्यों जनता ने अपनाया है। 


प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना  

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
    शुभकामनायें.


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  2. देश के कई ज्वलंत मुद्दों पर अच्छी रचना, बधाई.

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  3. बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है...

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