गुरुवार, 13 सितंबर 2012

मुक्तक








रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता...
मर्जी बिन खुदा यारो तो   जर्रा भी नहीं हिलता
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता



 मुक्तक:
मदन मोहन सक्सेना 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार लाजबाब मुक्तक के लिये बधाई,,,,मदन जी,,,,

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  2. वाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको... सादर वन्दे...

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