रविवार, 28 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल (हकीक़त)



 
















चेहरे की हकीक़त  को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है

मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है

क्या बताये आपको हम अपने  दिल की दास्ताँ
किसी पत्थर की मूरत पर ये अक्सर मचल जाता है

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:


  1. किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
    जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है,,,,,वाह बहुत उम्दा,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  2. चेहरे की हकीक़त को समझ जाओ तो अच्छा है
    तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है,,, सही कहा आपने

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