सोमवार, 28 जनवरी 2013

खेल






















जुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती है
मेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है


कहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा है
भरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा है


मुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती है
नहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है..


कदम बहकें हैं अब मेरे ,हुआ चलना भी मुश्किल है
ये मौसम है बहारों का , रोता आज ये दिल है


ना कोई अब खबर तेरी ,ना मिलती आज पाती है
हालत देखकर मेरी ये दुनिया मुस्कराती है


बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है
उधर तन्हा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है


पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक और शानदार प्रस्तुति -
    आभार आदरणीय -

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  2. पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
    सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है,,,

    शानदार प्रस्तुति -बहुत सुन्दर गजल,,,बधाई मदन जी
    आभार आदरणीय -recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

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  3. बहुत सुन्दर
    पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
    सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है


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  4. ब्लॉग भविष्यफल में जो लिखा है बिलकुल सत्य है मेरे लिए। आप लाजवाब हैं।

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  5. लाजवाब गजल हर शब्द में में कशिश ,शानदार कोशिश के लिए बधाई

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  6. बहुत मुश्किल है ये कहना कि किसने खेल खेला है
    उधर तन्हा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है
    bahut sunder bhav
    rachana

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