वक़्त की साजिश नहीं तो और किया बोले इसे
पलकों में सजे सपने ,जब गिरकर चूर हो जाये
अक्सर रोशनी में खोटे सिक्के भी चला करते
न जाने कब खुदा को क्या मंजूर हो जाए
भरोसा है हमें यारो की कल तस्बीर बदलेगी
गलतफमी जो अपनी है बह सबकी दूर हो जाये
लहू से फिर रंगा दामन न हमको देखना होगा
जो करते रहनुमाई है, बह सब मजदूर हो जाये
शिकायत फिर मुक्कदर से ,किसी को भी नहीं होगी
जब हर पल मुस्कराने को हम मजबूर हो जाये...
शोहरत की ख़ुशी मिलती और तन्हाई का गम मिलता
जब चर्चा में रहे कोई और मशहूर हो जाये .......
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति मदन जी.
जवाब देंहटाएंसस्वर पाठ-
जवाब देंहटाएंमजेदार ||
वक़्त की साजिश नहीं तो और किया बोले इसे
जवाब देंहटाएंपलकों में सजे सपने ,जब गिरकर चूर हो जाये
बेजोड़ शेर कहा है आपने.
सुंदर गजल,किन्तु बिना मतले के गजल अधूरी सी लगती है ,,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: कुछ तरस खाइये
भरोसा है हमें यारो की कल तस्बीर बदलेगी
जवाब देंहटाएंगलतफमी जो अपनी है बह सबकी दूर हो जाये ...
सच्चे दिल से कोशिश हो तो गलतफहमी दूर हो जाती है ... धैर्य जरूरी है ...
अच्छा शेर है ...
वाह ... बहुत खूब कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंSundar
जवाब देंहटाएंSundar
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की जा रही है। कृपया शनिवार 13/04/2013 को http://nirjhar-times.blogspot.com पर अवलोकन करें। आपके सुझाव एवं प्रतिक्रिया सादर आमन्त्रित हैं।
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachnaa hai sarthak sandarbh lie .bhavishy ke prati aas lie .
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