गुरुवार, 28 मार्च 2013

इतिश्री























अपने अनुभबों,एहसासों ,बिचारों को
यथार्थ रूप में
अभिब्यक्त करने के लिए
जब जब मैनें लेखनी का कागज से स्पर्श किया
उस समय मुझे एक बिचित्र प्रकार के
समर से आमुख होने का अबसर मिला
लेखनी अपनी परम्परा ,प्रतिष्ठा , मर्यादा के लिए प्रतिबद्ध थी
जबकि मैं यथार्थ चित्रण के लिए बाध्य था
इन दोनों के बीच कागज मूक दर्शक सा था
ठीक उसी तरह जैसे
आजाद भारत की इस जमीन पर
रहनुमाओं तथा अन्तराष्ट्रीय बित्तीय संस्थाओं के बीच हुए
जायज और दोष पूर्ण अनुबंध को
अबाम को मानना अनिबार्य सा है
जब जब लेखनी के साथ समझौता किया
हकीकत के साथ साथ कल्पित बिचारों को न्योता दिया
सत्य से अलग हटकर लिखना चाहा
उसे पढने बालों ने खूब सराहा
ठीक उसी तरह जैसे
बेतन ब्रद्धि के बिधेयक को पारित करबाने में
बिरोधी पछ के साथ साथ सत्ता पछ के राजनीतिज्ञों
का बराबर का योगदान रहता है
आज मेरी प्रत्येक रचना
बास्तबिकता से कोसों दूर
काल्पनिकता का राग अलापती हुयी
आधारहीन तथ्यों पर आधारित
कृतिमता के आबरण में लिपटी हुयी
निरर्थक बिचारों से परिपूण है
फिर भी मुझको आशा रहती है कि
पढने बालों को ये
रुचिकर सरस ज्ञानर्धक लगेगी
ठीक उसी तरह जैसे
हमारे रहनुमा बिना किसी सार्थक प्रयास के
जटिलतम समस्याओं का समाधान
प्राप्त होने कि आशा
आये दिन करते रहतें हैं
अब प्रत्येक रचना को
लिखने के बाद
जब जब पढने का अबसर मिलता है
तो लगता है कि
ये लिखा मेरा नहीं है
मुझे जान पड़ता है कि
मेरे खिलाफ
ये सब कागज और लेखनी कि
सुनियोजित साजिश का हिस्सा है
इस लेखांश में मेरा तो नगण्य हिस्सा है
मेरे हर पल कि बिबश्ता का किस्सा है
ठीक उसी तरह जैसे
भेद भाब पूर्ण किये गए फैसलों
दोषपूर्ण नीतियों के नतीजें आने पर
उसका श्रेय
कुशल राजनेता
पूर्ब बर्ती सरकारों को दे कर के
अपने कर्तब्यों कि इतिश्री कर लेते हैं



प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना  

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

होली है



















ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज 
यारों कब मिले मौका  अब  छोड़ों ना कि होली है. 

मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है 
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है 

क्या जीजा हों कि साली हो ,देवर हो या भाभी हो 
दिखे रंगनें में रंगानें में ,सभी मशगूल होली है 

ना शिकबा अब रहे कोई ,ना ही दुश्मनी पनपे 
गले अब मिल भी जाओं सब, कि आयी  आज होली है   

तन से तन मिला लो अब मन से मन भी मिल जाये  
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है 

प्रियतम क्या प्रिय क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं 
हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है . 



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 






गुरुवार, 21 मार्च 2013

अदालत फैसला और फ़िल्मी कलाकार




















देश की सबसे बड़ी अदालत  सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में फिल्म स्टार संजय दत्त  की माफी की दलील ठुकराते हुए उन्हें पांच साल की सजा सुनाई। 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट में 257 लोगों की मौत हो गई थी और 713 लोग घायल हुए थे।
इस सजा के बाद महेश भट्ट , जया  प्रदा ,करन जोहर और फ़िल्मी सितारों  के बयां हैरान करने बाले ही नहीं बल्कि  उनकी क़ानूनी जानकारी की भी पोल खोलते हैं . अब क्या देश की सबसे बड़ी अदालत  सुप्रीम कोर्ट को इन फ़िल्मी सितारों की राय भी लेनी पड़ेगी . जो हर बात को अपनी 
प्रसिद्धी से जोड़ कर रख देते है. 


मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 20 मार्च 2013

कुदरत





क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..

एक जमी वख्शी थी कुदरत ने हमको यारों  लेकिन
हमने सब कुछ बाँट दिया है मेरे में और तेरे में

आज नजर आती मायूसी मानबता के चेहरे  पर
अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में

बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

रविवार, 17 मार्च 2013

तुम्हारी याद
























आप के लिए "तुम्हारी याद "
प्रस्तुति : श्री मदन मोहन सक्सेना

तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

गुरुवार, 14 मार्च 2013

सरकार सहमति और सेक्स

ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) ने बिल के तमाम मुद्दों पर सहमति बना ली। सहमति से सेक्स की उम्र  18 से घटाकर 16 साल करने पर जीओएम में एकराय बन गई है . एक तरफ जब सोलह बरष में अपने भबिष्य को निरधारित करने बाले जनप्रतिनिधि को चुनने का अधिकार नहीं है तो बहीं सरकार ने सेक्स करने की कानूनन खुली छुट देने का मन बना लिया है. 
सहमति  से सेक्स की उम्र 16 वर्ष - इस निर्णय की आखिर क्या वजह है ? क्या यह निर्णय खाप पंचायतो के दबाव में लिया गया है, या फिर वे कौन लोग है जो इस चर्चा को आगे बढ़ा रहे है ? क्या यह महिलाओ को और अधिक स्वच्छंदता प्रदान करेगा या फिर उसके अधिकारों का अतिक्रमण, ये भविष्य के गर्भ में है | क्या यह मांग समाज कि तरफ से है, क्या हमारा समाज पंगु होता जा रहा है ? क्या हमारा समाज में बेटियों को सँभालने में अक्षम साबित हों रहा है ? जिस उम्र में यानि सोलहवे साल में जब भटकने की सबसे ज्यादा सम्भावना रहती है, उस समय उसे स्वच्छंदता देना या छूट देना कहा तक सही है | चारों तरफ प्रश्नचिन्ह लगे है , क्या इन सवालों के उत्तर है ?हमे विकास की सोचने की जगह सेक्स  की ज्यादा चिंता हो रही है इसके लिय भारत के नैतिक मूल्यो का हास हो रहा है  . सरकार एक नया कानून बनाने जा रही है जिसमे अन्य बातो के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण विषय यह है की सहमति से सेक्स की उम्र १८ से १६ वर्ष की जाए. मेरा ऐसा मानना है की १६ से १८ वर्ष तक युवक युवतिया यौवन की दहलीज पर होते है और इस दौरान वे अध्ययन कर रहे होते है क्या १६ वर्ष में सम्भोग की सहमति देकर सरकार उन्हें अध्ययन जैसे महत्वपूर्ण विषय से दूर नहीं कर रही है. मेरे विचार से इस कानून में से यह बात हटाई जानी चाहिए. कानून महिलाओं,लडकियों की सुरक्षा के लिए बनाए जाने चाहिए न की सेक्स को बढ़ावा देने के लिए , इस कानून का विरोध होना चाहिए,सेक्स की  उम्र् ज़ो 18 से  16 किया गयाहै जो गलत है क्यूँकि  लड़किया तो 16 साल मे 10 वी की  परीछा  देतीं है उस समय से यदि वो सेक्स शुरू  कर देंगी तो आगे चलकर परेशानी होगी . लोग क्यों देश के लिए ऐसा कानून बना रहे हैं जहाँ एक तरफ बाल विवाह रोकेने के लिये कह रहे हैं दूसरी तरफ सेक्स की उम्र कम करने की बात हो रही है  इसका  गलत इस्तेमाल होगा .पहले ही लड़कियों क़ी आज़ादी के नाम पर बहुत कुछ देखने को मिल चूका है . लगता है की सरकार हमसे कह रही हो कि 12 साल की उमर में गुटखा खा लो | 13 की उमर सिगरेट पी लो | 14 की उमर में चरस चाट लो | 15 की उम्र में इश्क लड़ा लो | 16 की उम्र में सेक्स कर लो | 17 की उम्र में एड्स के सफल मरीज घोषित हो जाओ | और जिन्दा रहने तक सरकार की तरफ से "राष्ट्रीय एड्स फैलाओ योजना" के तहत 500 रूपये का मासिक "एड्स भत्ता" घर बैठे पाओ |आलोचक कुछ भी कहें सरकार का यह कदम ऐतिहासिक और मील का पत्थर साबित होने जा रहा है |   महिला की सुरक्षा के लिये कदम उठना जरूरी है मगर इसके दुरुपयोग का परिणाम भी ध्यान मे रखा जाना चाहिये| कुछ लोग मानतें है कि  हमारे समाज पर इसका कोई बहुत ज्यादा असर नही होगा. कोई भी कानून को देख कर सेक्स नही करता. हमारे समाज की जड़े अभी भी काफी हद तक मजबूत है. दूसरी तरफ़ हमे पश्चिमी सभ्यता  का परिणाम तो हमे भुगतना ही पड़ेगा. हम वो करते है जो हम देखते है और  उसी को जंहा तक संभव हो अपनाने की कोशिश करते है. समाज मे लड़के लड़कियां सब पढ़े लिखे है सर्विस करते है अकेले रहते है . हमे मानसिक रूप से आनेवाले बदलाव के लिये तैयार  रहना चाहियें . जिस प्रकार से भारतीय फिल्मों ने सेक्स को जमकर परोसा है . महेश भट्ट ,एकता कपूर ,मलिक्का ,सनी लिओनी  सेक्स के ब्रांड अम्बेसडर बन कर उभरें है और समाज ने जिस तरह से हाथों हाथ लिया है और अब सरकार भी उसी पथ पर अग्रसर है ऐसा लगता है.  जिस तरह से पिछले 10 वर्षों में लड़के ल​ड़कियों में पाश्चात्य संस्कृति का असर हुआ। टेक्नालोजी ने सेक्स का जमकर प्रचार प्रसार किया है। जिस तरह से सेक्स के प्रति खुलापन आया है।
 रेप की परिभाषा को बदलना होगा। सेक्स को रेप से ना जोड़ा जाए नहीं तो लड़को की जिंदगी हराम हो जाएगी क्योंकि फिर कोई भी लड़की कुछ भी इल्जाम लगा सकती है।इस सेक्स की उम्र कम करने से क्या होगा मर्जी से सेक्स होगा फिर कोई भी नाराज होगा ओर आपस  में  कहा सुनी होगी तो रेपकेस दायर, वाह  रे सरकार मे बैठे दुश्चरित्र बुद्धिजीवी लोगों को  किस ओर ले जा रहे हो तुम समाज को इसका तुम्हे अंदाजा नही है बहुत जल्दी अंदाजा हो जायेगा बन जाने दो कानून 90% रेप ओर 90 % छेडखानी के केस दर्ज होंगे क्या इन सबसे निपटने के लिए सरकार के पास पुलिस ओर अदालत  हैं . कहा जायेगा समाज इन समाज के ठेकेदारों को खबर ही नही है देश को अराजकता ओर दुराचार के जंजाल मे फसाया  जा रहा है ताकि देश ओर देश का युवा सेक्स नशे  के जाल मे खोया रहे ओर इस तरह् की खबरों मे उलझा रहे ओर सरकारे देश को लुटती रहे कोई युवा खड़ा होकर सरकार के खिलाफ आवाज ना उठाये ,विदेशी  संस्कृति  का देश मे प्रवेश ,देश को विनाश ओर राजनेताओ को सत्ता के अहम्  मे चूर रहेगा ओर देश की युवा पीड़ी  शराब ओर सेक्स के जाल फंस  कर बर्बाद हो जायेगी यह होगा 10 साल बाद का इंडिया, यह सब सरकार की सोची समझी साजिश है देश को दूराचार के जाल मे धकेलने की,यह विदेशी कम्पनियों के हित साधने के लिये , अत्यंत मूर्खतापूर्ण फैसला लिया गया है वह भी बिना इस फैसले के इमप्लिकेशन्स को जाने बिना. देश में टीनेज प्रेगनेंसी की समस्या हो जायेगी , यौन रोगों की बाढ़ आ जायेगी और विदेशी दवा कम्पनियाँ , झोलाछाप डाक्टर्स और डाइयग्नॉस्टिक सेंटर्स जम कर कमाई करेंगे , जो उम्र पढने लिखने और खेलने कूदने की होती है उस उम्र में युवा पल दो पल की खुशियों के लिये अपनी जिंदगी खराब कर लेंगे.
 सहमती से सेक्स की उम्र 16 वर्ष - इस निर्णय की आखिर क्या वजह है ? क्या यह निर्णय खाप पंचायतो के दबाव में लिया गया है, या फिर वे कौन लोग है जो इस चर्चा को आगे बढ़ा रहे है ? क्या यह महिलाओ को और अधिक स्वच्छंदता प्रदान करेगा या फिर उसके अधिकारों का अतिक्रमण, ये भविष्य के गर्भ में है | क्या यह मांग समाज कि तरफ से है, क्या हमारा समाज पंगु होता जा रहा है ? क्या हमारा समाज में बेटियों को सँभालने में अक्षम साबित हों रहा है ? जिस उम्र में यानि सोलहवे साल में जब भटकने की सबसे ज्यादा सम्भावना रहती है, उस समय उसे स्वच्छंदता देना या छूट देना कहा तक सही है | चारों तरफ प्रश्नचिन्ह लगे है , क्या इन सवालों के उत्तर है ?





मदन मोहन सक्सेना












मंगलवार, 12 मार्च 2013

रहमत



















रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता.

मर्जी बिन खुदा यारो तो   जर्रा हिल नहीं सकता 
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता...

मन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लो 
जियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लो 

मर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने सपने हों
रहमत जब खुदा की हो तो बेगाने भी अपने हों 




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 6 मार्च 2013

मजबूरी


















आँखों  में  जो सपने थे सपनो में जो सूरत थी
नजरें जब मिली उनसे बिलकुल बैसी  मूरत थी

जब भी गम मिला मुझको या अंदेशे कुछ पाए हैं
बिठा के पास अपने  उन्होंने अंदेशे मिटाए हैं

उनका साथ पाकर के तो दिल ने ये ही  पाया है
अमाबस की अँधेरी में ज्यों चाँद निकल पाया है

जब से मैं मिला उनसे  दिल को यूँ खिलाया है
अरमां जो भी मेरे थे हकीकत में मिलाया है

बातें करनें जब उनसे  हम उनके पास हैं जाते
चेहरे  पे जो रौनक है उनमें हम फिर खो जाते

ये मजबूरी जो अपनी है  हम उनसे बच नहीं पाते
देखे रूप उनका तो हम बाते कर नहीं पाते 

बिबश्ता देखकर मेरी सब कुछ बो समझ  जाते 
हमसे  आँखों से ही करते हैं अपने दिल की सब बातें




काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना



रविवार, 3 मार्च 2013

याद
















तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना