सोमवार, 8 अप्रैल 2013

ग़ज़ल (हालात)






















दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों 
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है. 

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है 
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं 

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है 
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं 

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है 
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है 

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब  समय ना है 
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं 



ग़ज़ल  प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  
 

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक प्रसंगिक प्रस्तुति!
    इतनी सुन्दर गज़ल पेश करने के लिए सादर बधाई स्वीकारें।

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  2. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति मदन जी,आभार.

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  3. बहुत उम्दा सुंदर गजल के लिए बधाई,मदन जी!!!

    RECENT POST: जुल्म

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  4. समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
    रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं
    ...बहुत सही पंक्तियाँ..बहुतों के दिल में आज यह सवाल उठ खड़ा हुआ है .....सुन्दर प्रस्तुति

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  5. उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
    समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं ,...
    समय के बदलाव के साथ रिश्तों में बदलाव तो आता ही है ... फिर समय की तेजी भी तो है ...
    अच्छा शेर ...

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  6. रोचक रोज़नामचा सरजी आज के हालात का गजल में प्रस्तुत किया है आपने .

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