बुधवार, 8 मई 2013

तन्हाई की महफ़िल




सजा  क्या खूब मिलती है ,  किसी   से   दिल  लगाने  की
तन्हाई  की  महफ़िल  में  आदत  हो  गयी   गाने  की 

हर  पल  याद  रहती  है , निगाहों  में  बसी  सूरत 
तमन्ना  अपनी  रहती  है  खुद  को  भूल  जाने  की 

उम्मीदों   का  काजल    जब  से  आँखों  में  लगाया  है
कोशिश    पूरी  रहती  है , पत्थर  से  प्यार  पाने  की

अरमानो  के  मेले  में  जब  ख्बाबो  के  महल   टूटे 
बारी  तब  फिर  आती  है , अपनों  को  आजमाने  की

मर्जे  इश्क  में   अक्सर हुआ करता है ऐसा भी
जीने पर हुआ करती है ख्वाहिश मौत पाने की

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट ग़ज़ल की रचना,आभार.

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  2. उम्मीदों का काजल जब से आँखों में लगाया है
    कोशिश पूरी रहती है , पत्थर से प्यार पाने की-----
    प्यार की सकारात्मक सोच
    वाह बहुत खूब
    बधाई

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  3. सजा क्या खूब मिलती है ,किसी से दिल लगाने की
    सिर्फ और सिर्फ शामो सहर की तन्हाई है ...ye meri panktiyaan hain ..aapki pahli pankti me joda hai

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