सड़क पर एक महिला की लाश.
बेबस घायल बच्चा
और अपनी किस्मत पर रोते उसके पिता को.. !
और देखा मंहगी गाड़ी
जो पास से गुजर रही थी
और उन में बैठे दो कौड़ी की औकात वाले
अपने की इंसान कहने वाले
समाज के लोगों को !
देखा
बस में से झांकते लोगो को
जो सिर्फ नाटक देखने और तालियाँ पीटने की ट्रेनिग लेते हैं बड़े बड़े आदर्शो से
जिनमे कभी कभी मैं खुद भी होता हूँ !
और देखा.. मरती हुई इंसानियत को
बहते हुए भावनाओं के खून को.. !
बहुत दर्द हुआ
आखिर क्यों
आज का मानब इतना स्वार्थी हो गया है
आखिर क्यों.
मदन मोहन सक्सेना