मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

खेल जिंदगी।


 

 



जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।


किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

उसने कुछ बोला नहीं

उसने कुछ बोला नहीं




जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की 

दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के  बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया 

उसके बारे में 
महानगर के बारे में 
और 
जिंदगी के बारे में


 मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा

इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा





वक़्त की रफ़्तार ने क्या गुल खिलाया आजकल
दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं


इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं 


डर किसे कहतें हैं , हमको उस समय मालूम चला
जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं


अंदाज बदला दोस्ती का कुछ इस तरह से आजकल
खामोश रहकर, आज वह हमसे मिला करते हैं



मदन मोहन सक्सेना
जिस सस्ती लोकप्रियता को भुनाने के लिए और सुर्ख़ियों  में बने रहने के लिए आमिर खान ने जैसा बयां दिया है उसकी जितनी निंदा की जाये कम हैं , अब आगे से मैं आमिर खान की फिल्मो से अपने को दूर रखूँगा और आप। 


मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 22 नवंबर 2015

एक कथा (देवउठनी एकादशी /देवप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह )

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at: http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/tulsi-vivah#sthash.GwGREFdB.dpuf
गवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at: http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/tulsi-vivah#sthash.GwGREFdB.dpuf

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस  साल तुलसी विवाह 23 नवंबर 2015 को है।देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस मांगलिक प्रसंग के शुभ अवसर पर भक्तगण घर की साफ -सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं। शाम के समय तुलसी चौरा यानि तुलसी के पौधे के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरूप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं।










एक लड़की जिसका नाम वृंदा था ,राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी,बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी। जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुए थे .वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी हमेशा अपने पति की सेवा किया करती। कुछ समय बाद सुर और असुरों में भयंकर युद्ध हुआ। जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा।  स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेंगे,में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी।जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी। उनके व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर को ना जीत सके. सारे देवता जब हारने लगे तो वे सभी भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे , उन्होने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि  वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।   देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छूए। इधर जैसे ही इनका संकल्प टूटा,उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार गिराया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में आकर गिरा .जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
कौन हो आप जिसका स्पर्श मैने अनजाने किया है ,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई,। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, भगवान तुंरत पत्थर के हो गये, सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगी. तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी.।  उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा , आज से इनका नाम  तुलसी होगा, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप मे भी रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी पत्र के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी पत्र के भोग स्वीकार नहीं करुंगा।तभी से आज के दिन तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगेऔर तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है
 


एक कथा (देवउठनी एकादशी /देवप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह )

मदन मोहन सक्सेना




शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

हम तुम

कभी कभी लगता है की हम तुम एक ही थैली के चट्टे बट्टे हों , मैं तुझमें अपने को खोजता रहता हूँ और एक तू है जो मुझमें अपने को तलाशती रहती है। 


मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 18 नवंबर 2015

रिश्तें नातें प्यार बफ़ा

 
 
 
रिश्तें नातें प्यार बफ़ा से
सबको अब इन्कार हुआ

बंगला ,गाड़ी ,बैंक तिजोरी
इनसे सबको प्यार हुआ

जिनकी ज़िम्मेदारी घर की
वह सात समुन्द्र पार हुआ

इक घर में दस दस घर देखें
अज़ब गज़ब सँसार हुआ

मिलने की है आशा जिससे
उस से सब को प्यार हुआ

ब्यस्त हुए तव बेटे बेटी
बूढ़ा जब वीमार हुआ


रिश्तें नातें प्यार बफ़ा
 
 
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 17 नवंबर 2015

तुम्हारा तुम जानो




तुम्हारा तुम जानो जहां तक मेरा सवाल है हर रात्रि सोने से पहले और हर सुबह उठने से पहले तुम्हारा ख्याल  जेहन में आ जाता है। 


मदन मोहन सक्सेना


शनिवार, 14 नवंबर 2015

आज बाल दिबस है









आज बाल दिबस है
यानि पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन है
बच्चों ने स्कूल में खूब धमाल किया
और चाचा नेहरू को याद किया
बच्चों को पता है
गांधी (इंद्रा ,राजीव ) के बारे में
भगत सिहं किस  का नाम था
राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह  ने क्या किया ,नहीं पता
ये उधम सिहं कौन ?
ये खुदी राम बोस कौन 
ये बाबू गेणू कौन
ये नाना साहब पेशवा कौन
ये झांसी की रानी कौन 
ये महाराजा रंजीत सिहं कौन
ये मंगल पांडे कौन
ये सुभाष चंद्र बोस कौन
ये लाला लाजपत राय कौन
ये महाराणा प्रताप कौन
ये विपिन चंद्र पाल कौन
ये बाल गंगाधर तिलक कौन
ये चंद्र शेखर आजाद कौन
आज के बच्चें  इनमे से किसी को नहीं जानते
कब इनका जन्मदिन आकर चला जाता है
न मीडिया को याद रहता है
मीडिया बॉलीवूड और क्रिकेट कि चकाचौंध में मशगूल रहता है
न ही इस देश कि जनता को नमन करने का ख्याल रहता है
क्या करे दो जून कि रोटी का जुगाड़ करने में ही
मशगूल रहतें हैं
आज के बच्चें सिर्फ़ नेहरु- गांधी खानदान को ही जानते हैं
क्या करें बेचारें



मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

भाई दूज (लोकमान्यता एवं कथा )

 भाई दूज (लोकमान्यता एवं कथा ) 


 

भाई बहन के प्यार का ये है खास त्यौहार 
सच्चे मन से बहनें लें   मिले  जो भी उपहार




भाई दूज (भातृद्वितीया) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भाईदूज में हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देता है। भाईदूज दिवाली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। इस त्योहार के पीछे एक किंवदंती यह है कि यम देवता ने अपनी बहन यमी (यमुना) को इसी दिन दर्शन दिया था, जो बहुत समय से उससे मिलने के लिए व्याकुल थी। अपने घर में भाई यम के आगमन पर यमुना ने प्रफुल्लित मन से उसकी आवभगत की। यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। इसी कारण इस दिन यमुना नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके अलावा यमी ने अपने भाई से यह भी वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, हर भाई अपनी बहन के घर जाए। तभी से भाईदूज मनाने की प्रथा चली आ रही है। जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज पर अवश्य जाते हैं और उनसे टीका कराकर उपहार आदि देते हैं। बहनें पीढियों पर चावल के घोल से चौक बनाती हैं। इस चौक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं।
 भारतीय में जितने भी पर्व त्यौहार होते हैं वे कहीं न कहीं लोकमान्यताओं एवं कथाओं से जुड़ी होती हैं। इस त्यौहार की भी एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार। यमी यमराज की बहन हैं जिनसे यमराज काफी प्रेम व स्नेह रखते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को एक बार जब यमराज यमी के पास पहुंचे तो यमी ने अपने भाई यमराज की खूब सेवा सत्कार की। बहन के सत्कार से यमराज काफी प्रसन्न हुए और उनसे कहा कि बोलो बहन क्या वरदान चाहिए। भाई के ऐसा कहने पर यमी बोली की जो प्राणी यमुना नदी के जल में स्नान करे वह यमपुरी न जाए। यमी की मांग को सुनकर यमराज चिंतित हो गये। यमी भाई की मनोदशा को समझकर यमराज से बोली अगर आप इस वरदान को देने में सक्षम नहीं हैं तो यह वरदान दीजिए कि आज के दिन जो भाई बहन के घर भोजन करे और मथुरा के विश्राम घट पर यमुना के जल में स्नान करे उस व्यक्ति को यमलोक नहीं जाना पड़े। इस पौराणिक कथा के अनुसार आज भी परम्परागत तौर पर भाई बहन के घर जाकर उनके हाथों से बनाया भोजन करते हैं ताकि उनकी आयु बढ़े और यमलोक नहीं जाना पड़े। भाई भी अपने प्रेम व स्नेह को प्रकट करते हुए बहन को आशीर्वाद देते है और उन्हें वस्त्र, आभूषण एवं अन्य उपहार देकर प्रसन्न करते हैं।
  इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इसी दिन 'गोधन' नामक पर्व मनाया जाता है जो भाईदूज की तरह होता है।  भाई दूज (लोकमान्यता एवं कथा ) 

मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

आज नरक चतुदर्शी है

आज नरक चतुदर्शी है ,नरक चतुदर्शी ,को रूप चतुदर्शी या यम चतुदर्शी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन मुख्यतः भगवान यमराज को समर्पित है। 

भारत में यमराज के मुख्यता तीन मंदिर हैं 

1. यमराज मंदिर (भरमौर, हिमाचल प्रदेश)

यम देवता को समर्पित यह मंदिर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नामक जगह पर है। ये जगह दिल्ली से करीब 500 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है। इस मंदिर में एक खाली कमरा भी है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा कहा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि जब किसी वयक्ति की मृत्यु होती है तो यमराज के दूत उसकी आत्मा पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने लेकर जाते हैं।
चित्रगुप्त आत्मा को उनके कर्मों का पूरा ब्योरा देते हैं। इसके बाद आत्मा को यमराज की कचहरी में लाया जाता है।
यहां यमराज कर्मों के अनुसार आत्मा को अपना फैसला सुनाते हैं। यह भी मान्यता है इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नर्क ले जाते हैं।

 

2. श्री यमुनाजी-यमराज, भाई-बहन का मंदिर (विश्राम घाट, मथुरा)

यमुनाजी और धर्मराज को समर्पित यह मंदिर मथुरा में यमुना नदी के विश्राम घाट पर है। इस मंदिर को बहन-भाई के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यमुना और यमराज भगवान सूर्य की संतानें हैं। इस मंदिर में यमुना और धर्मराज की मूर्तियां एक साथ लगी हुई हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि जो भी भाई, भाई दूज के दिन यमुना में स्नान करके इस मंदिर में दर्शन करता है, उसे यमलोक नहीं जाना पड़ता। 

3. धर्मराज मंदिर (लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश)

ऋषिकेश में भी भगवान यमराज का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। मंदिर के मुख्य भाग में भगवान यमराज की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान यमराज के आस-पास कुछ मूर्तियां है, जिन्हें यमदूतों की मूर्तियां मानी जाती है। यमराज के बाईं ओर एक मूर्ति स्थापित है, जो चित्रगुप्त महाराज की मूर्ति है। यहां स्थापित मूर्ति में भगवान यमराज कुछ लिखने की मुद्रा में विराजित हैं।







 आज नरक चतुदर्शी है 

मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 9 नवंबर 2015

दीवाली और मैं



 दीवाली और मैं 

दीवाली का पर्ब है फिर अँधेरे में क्यों रहूँ
आज मैनें फिर तेरी याद के दीपक जला लिए   …






 
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मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी  वो  भी अपने हैं
हकीकत में वे  बदलेंगें , दिलों में जो भी सपने हैं




मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

हम आप और धनतेरस का पर्ब






आज यानि शुक्रबार दिनांक नवम्बर छह  दो हज़ार पंद्रह ,आज के तीन दिन बाद को पुरे भारत बर्ष में धनतेरस मनाई जाएगी। धनतेरस के दिन सोना, चांदी के अलावा बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था। इस अमृत कलश को मंगल कलश भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया था। यही कारण है आम जन इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं। आधुनिक युग की तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा आज भी कायम है और समाज के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं। हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी केदिन धन्वतरि त्रयोदशी मनायी जाती है। जिसे आम बोलचाल में ‘धनतेरस’ कहा जाता है। यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है। पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है। परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए। रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’ इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं। रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।


हम आप और धनतेरस का पर्ब



मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल (करबा चौथ )

परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल
(करबा चौथ )





करवाचौथ के दिन
भारतबर्ष में सुहागिनें
अपने पति की लम्बी उम्र के लिए
चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है .
पति पत्नी का रिश्ता समस्त
इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है
आज के इस दौर में जब सब लोग
एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों
तो आजकल पत्नी का पति के लिए उपवास रखना
किसी अजूबे से कम नहीं हैं।
कहाबत है कि करवा चौथ का व्रत रखने से
पति की आयु बढती है और प्यार भी
तो क्या जिनके खानदान में ये परंपरा है
क्या वहां कोई विधवा नहीं होती
और वहां कभी कोई तलाक नहीं हुआ
अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्यूं ये दिखावा
ऐसें भी दम्पति हैं सारे साल लड़ते झगड़ते है
और फिर ये दिखावा करते है
क्या जो महिलाये ये व्रत नहीं रखती
वो अपने पति से प्यार नहीं करती
क्या उनके मन में
अपने पति की उम्र की लम्बी कामना नहीं होती
क्या वे विधवा हो जाती है
नहीं ऐसा कुछ नहीं होता
हम सब ये सब जानते हैं
फिर भी ये परंपरा निभाते चले जाते है
ये अंधविश्वास नहीं तो और क्या है
आज जरुरत है पुराने अंधविश्वास को छोड़कर
नयी मान्यताओ को लेकर आगे बढना
जिसका कोई ठोस मकसद हो
वेसे भी क्या एक दिन ही काफी है
पति के लम्बी उम्र की कामना के लिए
बाकी के दिन नहीं
अगर हर रोज ये कामना करनी हैं
फिर ये करवा चौथ क्यों ?
आज के समय में
जरुरत है कि
नयी परम्पराओं को जन्म देकर
आपसी रिश्ता
कैसे मजबूत कर सकें
परस्पर मिलकर खोज करने की।

मेरी पत्नी को समर्पित एक कबिता :

*******************************************************
अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ
पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना

अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकी फिर क्या करना है

अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बह सजा होगी
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी खता होगी

मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

राम तुम्हारें देश में मानव कैसे कैसे व्यवहार करे








 


माँ काली माँ दुर्गा माँ शक्ति महा माया
ममता की मूरत तू ममता का दान दे  दे
ज्ञानशक्ति ज्ञान गंगा ज्ञान दायिनी तू माँ
विंध्याचल निवासनी आज भक्तों को ज्ञान दे दे



 







मन में रावण पाल लिए सब पुतले का सँहार करें
राम तुम्हारें देश में
मानव कैसे कैसे व्यवहार करे

 
 नवरात्रि और   विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनायें। 


मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

गुनगुनाना चाहता हूँ





गुनगुनाना चाहता हूँ

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है 

या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल  दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

दिल के पास



दिल के पास


 
दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।

 
किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपने
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।


जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और वोने का ये खेल जिंदगी।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

जुमले , जनता और जनतंत्र


जुमले , जनता और जनतंत्र



शैतान 
ब्रह्मपिशाच 
आरक्षण 
जातिबाद
चारा चोर 
नर भक्षी 
डी एन  ए 
जैसे 
जुमलों के बीच 
आम  आदमी 
बिकास 
गरीबी 
मँहगाई 
भृष्टाचार 
जैसे सामायिक मुद्दे 
अचानक परिदृश्य से गायब से हो गए 
अब आज चुनाब के प्रथम चरण में 
बिहार की जनता को 
निर्णय करना है 
कि वे किसके साथ हैं 
और कौन उनकी 
अपेक्षायें पूरी कर सकता है। 

 
मदन मोहन सक्सेना


गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

गाँधी , अहिंसा और हम






कल गाँधी  जयन्ती है यानि २  अक्टूबर . शत शत नमन बापू आपको एक सवाल कि हम सब कितने बापू के कहे रास्तों पर चल रहे है या फिर रस्म अदायगी करके ही अपना फ़र्ज़ निभाते रहेंगें। 



गाँधी , अहिंसा और हम


कल शाम जब हम घूमने जा रह रहे थे
देखा सामने से गांधीजी आ रहे थे
नमस्कार लेकर बोले, आखिर बात क्या है?
पहिले थी सुबह अब रात क्या है!
पंजाब है अशान्त क्यों ? कश्मीर में आग क्यों?
देश का ये हाल क्यों ?नेता हैं शांत क्यों ?
अपने ही देश में जलकर के लोग मर रहे
गद्दी पर बैठकर क्या बे कुछ नहीं कर रहे
हमने कहा नहीं ,ऐसी बात तो नहीं हैं
कह रहा हूँ जो तुमसे हकीकत तो बही है
अहिंसा ,अपरिग्रह का पालन बह कर रहें
कहा था जो आपने बही आज बह कर रहे
सरकार के मन में अब ये बात आयी है
हथियार ना उठाने की उसने कसम खाई है
किया करे हिंसा कोई ,हिंसा नहीं करेंगें हम
शत्रु हो या मित्र उसे प्रेम से देखेंगे हम
मार काट लूट पाट हत्या राहजनी
जो मर्जी हो उनकी, अब बह चाहें जो करें
धोखे से यदि कोई पकड़ा गया
पल भर में ही उसे बह छोड़ा करें
मर जाये सारी जनता चाहें ,उसकी परवाह नहीं है
चाहें जल जाये ही ,पूरा भारत देश अपना
हिंसा को कभी भी स्थान नहीं देते
अहिंसा का पूरा होगा बापू तेरा सपना
धन को अब हम एकत्र नहीं करते
योजना को अधर में लटका कर रखते
धन की जरुरत हो तो मुद्राकोष जो है
भीख मांगने की अपनी पुरानी आदत जो है
जो तुमने कहा हम तो उन्हीं पर चल रहे
तेरे सिधान्तों का अक्षरशा पालन कर रहे
आय जितनी अपनी है, खर्च उससे ज्यादा
धन एकत्र नहीं करेंगें ,ये था अपना  वादा


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

सोमवार, 28 सितंबर 2015

ये क्या दुनिया बनाई है


ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला)

मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये

तेरी दुनियां में कुछ बंदें करते काम क्यों गंदें
कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जायें

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये

ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये



मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 13 सितंबर 2015

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़लयुबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक १ , मार्च  २०१४  में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .









कैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें बतन मेरे बो आ जाये

तिजोरी में भरा धन है मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी भुखमरी में क्यों जीबन बीतता जाये

ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें .

कभी बाटाँ धर्म ने है कभी जाति में खो जाते
हमारें रहनुमाओं  का, असर सब पर नजर आये

ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा तंत्र है यारों , ये जल्दी से गुजर जाये


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष में

 प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष , बर्ष -३ , अंक 3  , मई  २०१४ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .

 


















जानकर अपना तुम्हे हम हो गए अनजान खुद से
दर्द है क्यों अब तलक अपना हमें माना नहीं नहीं है


अब सुबह से शाम तक बस नाम तेरा है लबो पर
साथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं है


गर कहोगी रात को दिन ,दिन लिखा बोला करेंगे
गीत जो तुमको न भाए बो हमें गाना नहीं है


गर खुदा भी रूठ जाये तो हमें मंजूर होगा
पास बो अपने बुलाये तो हमें जाना नहीं है


प्यार में गर मौत दे दें तो हमें शिकबा नहीं है
प्यार में बो प्यार से कुछ भी कहें ना नहीं है


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना






मंगलवार, 25 अगस्त 2015

हम ऐतवार कर लेगें




हम ऐतवार कर लेगें

बोलेंगे जो भी हमसे वह  ,हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें

बह मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी हैं 
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार वह हमको
गर अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें


मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

सब सिस्टम का रोना रोते


सुबह हुयी और बोर हो गए
जीवन में अब सार नहीं है

रिश्तें अपना मूल्य खो रहे
अपनों में वो प्यार नहीं है

जो दादा के दादा ने देखा
अब बैसा संसार नहीं है

खुद ही झेली मुश्किल सबने
संकट में परिवार नहीं है

सब सिस्टम का रोना रोते
खुद बदलें ,तैयार नहीं है

मेहनत से किस्मत बनती हो
मदन आदमी लाचार नहीं है



मदन मोहन सक्सेना


शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

उसे हम बोल क्या बोलें

उसे हम बोल क्या बोलें


उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें

जीवन के सफ़र में जो मुसीबत में भी अपना हो
राज ए दिल मोहब्बत के, उसी से यार खोलेंगें

जब अपनों से और गैरों से मिलते हाथ सबसे हों
किया जिसने भी जैसा है , उसी से यार तोलेंगें

अपना क्या, हम तो बस, पानी की ही माफिक हैं
मिलेगा प्यार से हमसे ,उसी  के यार होलेंगें

जितना हो जरुरी ऱब, मुझे उतनी रोशनी देना 
हम अँधेरे में भी डोलेंगें और उजालें में भी डोलेंगें 

प्रस्तुति
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक १० ,जुलाई २०१५ में



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक १०    ,जुलाई २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .




                             


 ग़ज़ल (मुसीबत यार अच्छी है)


 

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना  दिल  अभी भी तो मचलता है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

ग़ज़ल (मुसीबत यार अच्छी है)
 

मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 28 जून 2015

ये जीबन यार ऐसा ही




ये जीबन यार ऐसा ही ,ये दुनियाँ यार ऐसी ही
संभालों यार कितना भी आखिर छूट जाना है

सभी बेचैन रहतें हैं ,क्यों मीठी बात सुनने को
सच्ची बात कहने पर फ़ौरन रूठ जाना है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है प्यारे
बरना, रिश्तें काँच से नाजुक इनको टूट जाना है

रखोगे हौसला प्यारे तो हर मुश्किल भी आसां है
अच्छा भी समय गुजरा बुरा भी फूट जाना है

मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 23 जून 2015

मेरी पोस्ट रंग बदलती दूनियाँ देखी आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में



मेरी पोस्ट रंग बदलती दूनियाँ देखी आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में 




 

प्रिय   मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट रंग बदलती दूनियाँ देखी आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में शामिल की गयी है।  आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं।


 http://aapkablog.abplive.in/blogs/madan-saxena







रंग बदलती दूनियाँ

सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे
रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा

सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा

देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में
मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा

पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा

रिश्तें नातें प्यार की बातें ,इनको खूब सिसकते देखा
नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा

मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 21 जून 2015

एक मुक्तक















एक मुक्तक 

जिन्हें दुनिया की ना परवाह जिनके हौसलें ऐसे 
दिल की बात सुनकर के अपने दम पर जीते हैं
बिखेरेंगे ज़माने में खुशियां गर मिले उनको
छुपा कर अपने गम को  ,जो खुद ही यार पीते हैं 


मदन मोहन  सक्सेना

सोमवार, 15 जून 2015

मोदी , मदद और मुसीबत


मोदी , मदद और मुसीबत


कल शाम को
टी बी पर एक घटना देखी
संबिधान और कानून की  रक्षा  करने की शपथ लेने बाले मंत्री ने
देश के कानून से भागने बाले की
मानबीय आधार पर मदद क्या की
बिरोधी दलों को मानों  मौका मिल गया
बिरोध करने का 
लेकिन जिस तरह की राजनीति आजकल चल रही है
जब भी किसी नेता या मंत्री पर आरोप लगता है
तो पहली प्रतिक्रिया होती है
कि हमारा नेता या मंत्री बेकसूर है.
वही इस मामले में भी हो रहा है
और अब देश की विदेश मंत्री
क़ानून से भागे हुए एक व्यक्ति के संपर्क में क्यों थीं?
ये सवाल उनसे ज़रूर पूछा जाना चाहिए.
जिस व्यक्ति को देश का क़ानून,
इनफोर्समेंट डायरेक्टर खोज रहा है
जिसके बारे में लुक आउट नोटिस है
जिसका पासपोर्ट एक बार रद्द किया जा चुका है
ऐसे व्यक्ति से देश की विदेश मंत्री संपर्क में क्यों थीं?
उसकी मदद क्यों कर रही थीं?
सवाल उठता है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया?
मानबीय आधार पर
या फिर कुछ और बजह से
आखिर सरकार और मंत्रियों की
मानबता
तब क्यों गायब हो जाती है
जब किसान आत्म हत्या करते हैं
गरीब परिबार अपनी जान दे देता है
देश का आम नागरिक
अमानबीय  स्थिति में जीने को मजबूर रहता है




 

बुधवार, 3 जून 2015

ख्वाहिश अपने दिल की


ख्वाहिश अपने दिल की


हे रब किसी से छीन कर मुझको ख़ुशी ना दीजिये
जो दूसरों को बख्शी को बो जिंदगी ना दीजिये

तन दिया है मन दिया है और जीवन दे दिया
प्रभु आपको इस तुच्छ का है लाखों लाखों शुक्रिया

चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो
प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

मेरी अर्ध्य है प्रभु आपसे प्रभु शक्ति ऐसी दीजिये
मुझे त्याग करूणा प्रेम और मात्र  भक्ति दीजिये

तेरा नाम सुमिरन मुख करे कानों से सुनता रहूँ
करने को  समर्पित पुष्प मैं हाथों से चुनता रहूँ

जब तलक सांसें हैं मेरी ,तेरा दर्श मैं पाता रहूँ
ऐसी  कृपा  कुछ कीजिये तेरे द्वार मैं आता रहूँ

प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 22 मई 2015

उम्मीद के इंतज़ार में एक बर्ष (मोदी सरकार)


उम्मीद के इंतज़ार में एक बर्ष (मोदी सरकार)

समय कैसे जाता है ये उससे अधिक और कौन जानता होगा जो उम्मीदों के सहारे अपनी जिंदगी ढो  रहा हो। आम जनता ने जिस उम्मीद से मोदी सरकार को सत्ता सौफी थी , कहना मुश्किल  है कितनी उम्मीदों पर ये सरकार खरी उतरी है।  बर्ष के बारह महीनो में दो महीने प्रधान मंत्री मोदी जी बिदेश में रहे है ,करीब बीस देशों की यात्रा की है , सैकड़ों समझौते किये हैं , ट्विटर पर उनके फॉलोवर की संख्या दिन दूनी रात चौगनी की गति से बढ़  रही है , मंगोलिया को एक अरब डॉलर की सहायता दी है ,नेपाल में मदद देने के मामले में बिदेशों से भी प्रंशशा पाई है , यमन से अपने ही नहीं बिदेशी नागरिको को भी सफलता पूर्बक  निकाला  है , लेकिन लाख टके का एक सवाल इससे भारत की आम जनता को क्या मिला।
जनता ने मोदी को पांच साल के लिए प्रधानमंत्री चुना है इसलिए उनसे पूरा हिसाब-किताब आज ही मांगना उचित और तर्कसंगत नहीं है। आज अगर किसी बात का आकलन किया जा सकता है, तो वह है इस सरकार की दिशा, उसके द्वारा बनाई गई नीतियों से मिलने वाले संकेत और सरकार की नीयत के सबूत। दूसरी बात ये कि आजादी के बाद पहली बार दिल्ली में सरकार ही नहीं बदली बल्कि एक पूर्ण सत्ता परिवर्तन हुआ है, इसलिए पुराने मानकों और कसौटियों पर ही अगर आप इस एक साल को तौलेंगे तो शायद आप उतने सही न हों। वैसे इस सरकार ने एक साल में देश को अकर्मण्यता, निराशावाद और लचर प्रशासन के माहौल से बाहर तो निकाला है और इससे इसका बड़े से बड़ा आलोचक भी इनकार नहीं कर सकता।
सत्ता में सरकार के भी एक बरस पूरे होने को है। इस बीच देश में काफी कुछ गुजर गया है। मोदी दुनिया का सफर कर चुके हैं, उनकी पार्टी गठबंधन के रास्ते जम्मू और कश्मीर में सरकार का हिस्सा बन गई। दूसरे चुनावों में भी पार्टी को ठीक ठाक सफलता हाथ लगी लेकिन दिल्ली में BJP को आम आदमी पार्टी के हाथों करारी शिकस्त मिली।लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के बावजूद सरकार राज्य सभा में विपक्ष के सामने संघर्ष करती हुई दिख रही है। ऊपरी सदन में सरकार के पास नंबर कम हैं और इसका मतलब हुआ कि कई महत्वपूर्ण विधेयक यहां फंसे हुए हैं।सरकार के लिए यह एक गंभीर स्थिति बन गई है। यह छुपी बात नहीं है कि सरकार जो चीजें हासिल करना चाहती थी, उनमें बहुत सारी बातें अटकी रह गई हैं क्योंकि कई विधेयक कानून में तब्दील नहीं हो पा रहे हैं। इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि लोकसभा में हाशिये पर खड़ा विपक्ष सुर्खियां बटोरने के मामले में बढ़त की स्थिति में दिखता है।
अगर आप सरकार के बिजली मंत्री की सुनें तो हालात पहले से बेहतर लगते हैं।हालांकि राज्य बिजली बोर्डों की खस्ताहालत भी एक अलग हकीकत है और केंद्रीय बिजली मंत्री का उन पर कोई बस नहीं है। इसके बावजूद उनके मंत्रालय के कामकाज को लेकर इंडस्ट्री की राय पॉजिटिव ही रही है। इस लिहाज से बिजली के क्षेत्र में सरकार का कामकाज तकरीबन ठीक कहा जा सकता है।
सड़क मंत्रालय के के खाते में महाराष्ट्र के सड़क मंत्री की हैसियत से बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर उम्दा परफॉर्मेंस की उपलब्धियां जुड़ी हुई हैं। गडकरी के होने से देश में सड़कों की स्थिति और बेहतर होनी चाहिए थी।
हालांकि गडकरी ने दावा किया कि UPA के दौर में हर रोज 2 किलोमीटर सड़क बनने की रफ्तार की तुलना में अधिक तेजी से काम हो रहा है।उनके मुताबिक देश में रोजाना 12-14 किलोमीटर सड़क बन रही है और अगले 2 साल में यह रफ्तार बढ़कर 30 किलोमीटर रोजाना के करीब पहुंच सकती है। लेकिन हकीकत यह है कि इस लक्ष्य के रास्ते में भूमि अधिग्रहण बिल का अटका होना भी एक बाधा है।और यह एक सच है कि बुनियादी ढांचे के विस्तार की किसी परियोजना के लिए जमीन की जरूरत होती है। वह चाहे सड़क हो या एयरपोर्ट या कुछ और। इस मोर्चे पर सरकार यकीनन नाकाम रही कि उसने इसे गरीब बनाम अमीर की बहस में तब्दील हो जाने दिया।सरकार पर यह तोहमत कि वह अमीरों के लिए काम कर रही है, कम से कम अभी के लिए तो असर कर रही है। इन हालात में देखें तो बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर भी सरकार का कामकाज अच्छा कहा जा सकता है।
आम मान्यता है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार कम हुआ है और कारोबार जगत भी यह मानता है। लेकिन भले ही इस करप्शन में कमी आई हो पर आम आदमी को सीधे परेशान करना वाला छोटा-मोटा भ्रष्टाचार जारी है, चाहे वह पुलिस हो या फिर कोई सरकारी एजेंसी या कोई और। इसी वजह से लोगों को यह लगा कि अरविंद केजरीवाल शायद उनकी मदद कर पाएं और दिल्ली में आम आदमी पार्टी को ऐतिहासिक जनादेश मिला।यहां तक कि प्रधानमंत्री से जुड़ी उन खबरों को भी सकारात्मक तरीके से लिया गया जिनमें कहा गया कि वह अपने मंत्रियों की मीटिंग्स पर नजर रखते हैं, मंत्रियों को साफ निर्देश देते हैं कि कारोबारियों से दूरी बनाकर रहें और आधिकारिक चैनलों के अलावा किसी ओर रूट से उनसे न मिलें।
स्वच्छ भारत, सब के लिए शौचालय और बैंकों तक सभी की पहुंच , यह उम्मीद की जा सकती है कि इन योजनाओं को जिन्हें लागू करना है, वे भी प्रधानमंत्री की तरह ही प्रतिबद्ध हैं।और इन सबसे ऊपर आम आदमी यह समझ पा रहा है कि इन योजनाओं में उनके लिए क्या है। हालांकि अभी भी लंबा सफर तय करने के लिए बाकी हैं लेकिन इसे अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है। इस मोर्चे पर सरकार का कामकाज अच्छे से बेहतर कहा जाता है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन और ऐसी योजनाओं को लंबा रास्ता तय करना है।इनके अलावा महंगी प्राइवेट मेडिकल सुविधाओं पर बढ़ती निर्भरता एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सरकार को विचार करने की जरूरत है। आम तौर पर यह राय बनती दिख रही है कि मेडिकल सुविधाएं आम लोगों की पहुंच से बाहर जा रही हैं। जो मेडिकल सुविधा आम आदमी की पहुंच के दायरे में है, उसकी गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े होते रहते हैं। इसलिए इस मोर्चे पर सरकार का कामकाज औसत ही कहा जा सकता है।जहां तक शिक्षा का सवाल है, यह देश की तरक्की के लिए महत्वपूर्ण है। एजुकेशन के मसले पर मानव संसाधन विकास मंत्री अपने वास्तविक कामकाज की तुलना में विवादों की वजह से अधिक सुर्खियों में रहीं। यह सच है कि कई बार मंत्री को बेजा निशाना बनाया गया लेकिन सरकार इस मसले से निपट सकती थी।और अगर उन्हें मंत्री बनाए जाने से कुछ हासिल होना था तो इसके बारे में बताया जाना चाहिए था और जरूरी कदम उठाने जाने चाहिए थे या फिर किसी और को जिम्मेदारी दी जा सकती थी। इसलिए एजुकेशन के मोर्चे पर सरकार का परफॉर्मेंस कामचलाऊ ही कहा जा सकता है।भाषणों और मंगलायन अभियान की जबर्दस्त कामयाबी के अलावा इस मसले पर ज्यादा कुछ लिखने की गुंजाइश नहीं है।
हालांकि इस बात के कई उदाहरण मिल जाते हैं कि सरकार के कई मंत्री किसी VIP की तुलना में अधिक सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री के कुनबे में लफ्फाजों की भी कमी नहीं है।इसी साल अप्रैल में नागरिक उड्डयन मंत्री ने कहा कि वह उड़ान के दौरान प्रतिबंधित चीजें साथ रखते हैं और मंत्री होने की वजह से उनकी तलाशी नहीं ली जाती है। पहले तो गलती करें फिर इस पर शेखी बघारें?प्रधानमंत्री को उनकी सार्वजनिक तौर पर निंदा करना चाहिए थी। हालांकि पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि ऐसा हुआ हो। और फिर इसी हफ्ते केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव ने दल-बदल के साथ एयरपोर्ट के एक्जिट गेट से भीतर जाने की कोशिश की।और अगर प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उनके मंत्री आम आदमी की तरह बर्ताव करें, वास्तव में उनके सेवकों की तरह पेश आएं, रामकृपाल यादव ने जो किया, उसकी निंदा की जानी चाहिए। उम्मीद है कि मोदी इसकी खबर लेंगे।हालांकि सरकार में ऐसे मंत्री भी हैं जो सभी नियमों का पालन करते हैं, कैटल क्लास में सफर करते हैं और यहां तक कि निजी यात्राओं में अपना बिल खुद भरते हैं। इस मोर्चे पर सरकार के कामकाज को औसत से अच्छा कहा जा सकता है।
साम्प्रदियक सदभाब के  क्षेत्र में प्रधानमंत्री की ओर से बार-बार दिए गए आश्वासनों के बावजूद छवि गढ़ने की सरकार की राजनीति कमजोर रही है।  तोड़-फोड़ की हरेक घटना को सांप्रदायिक करार देने में राजनीतिक पार्टियों और यहां तक कि मीडिया की भी गलती थी।कुछ मंत्रियों और पार्टी नेताओं की बयानबाजी ने इस मसले पर ज्यादा मदद नहीं की। ईमानदारी से कहा जाए तो इस क्षेत्र में मोदी पर किसी और की तुलना में सबसे अधिक नजर रखी जा रही है और उन्हें ऐसे लोगों पर शासन करने में कड़ी मेहनत करनी होगी जितना उन्होंने अभी तक नहीं किया होगा।
हालांकि मोदी के आने के बाद देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ है लेकिन लोगों की राय न बदल पाने की नाकामी की वजह से सरकार को इस क्षेत्र में औसत से ज्यादा की रेटिंग नहीं दी जा सकती है।
नदियों की स्थिति के बारे में बातें बहुत की गई हैं लेकिन जमीन पर दिखाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। वाराणसी इसका अपवाद है जहां घाटों की स्थिति में सुधार हुआ है। कहते हैं कि बनारस के घाट इतने साफ सुथरे कभी नहीं थे। हालांकि हमारी नदियां घाटों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं और यह केवल एक शहर की बात नहीं है।वैसे इसमें वक्त लगेगा और सरकार इसे लेकर गंभीर दिखती है। प्रधानमंत्री और उनकी टीम को दिखाना है कि वे यहां प्रशासन करने के लिए हैं न कि हुकूमत करने के लिए।
सौभाग्य से प्रधानमंत्री की यह छवि बरकरार है कि वह प्रशासन के मोर्चे पर अच्छा कर रहे हैं। लेकिन उन्हें इस छवि को बरकरार रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। एक हद के बाद लोग छवियों आगे जाकर जमीन पर नतीजों की तलाश करेंगे। अगर बगैर किसी चश्मे के देखा जाए तो विदेश नीति, अर्थव्यवस्था की मोटी-मोटी स्थिति, महंगाई, विकास की दर, भ्रष्टाचार मिटाने के लिए उठाए गए कदम, प्रशासनिक मुस्तैदी और देश में एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए मोदी सरकार ने बेहतरीन काम किया है। साथ ही कुछ नए संकल्पों, जैसे स्वच्छ भारत, जनधन योजना और जनसाधारण के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री बीमा योजनाओं के लिए मोदी सरकार की कल्पनाशीलता की सराहना की जानी चाहिए।मगर कुछ मोर्चों पर मोदी सरकार की गति धीमी रही है। इस देश को नौकरियां चाहिए। इसके लिए जरूरी है, देश के मझोले और लघु उद्योगों में नई जान फूंकना। अगर उद्योग नहीं बढ़ेंगे तो हमारी युवा पीढ़ी का क्या होगा? देश के किसी भी औद्योगिक शहर में चले जाइए छोटे से बड़ा कारखानेदार हैरान और परेशान ही मिलेगा। इस दिशा में जिस गति से फैसले होने चाहिए वैसा अभी दिखता नहीं है। सरकार भूमि अधिग्रहण का अध्यादेश लाई मगर फिर इसपर रक्षात्मक क्यों हो गई? बढ़ती हुई जनसंख्या और उसकी जरूरतों के लिए शहरीकरण और औद्योगीकरण आवश्यकता ही नहीं, बल्कि देश की अनिवार्यता है। लंबे समय बाद पूर्ण बहुमत से आई केंद्र सरकार अपने इस कर्तव्य से इसलिए नहीं डिग सकती क्योंकि कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं।



टैक्स कानून लागू करने की तरफ भी सरकार शायद इनकम टैक्स महकमे के बाबुओं के दबाव में आ गई, नहीं तो कोई कैसे रिटर्न भरने के लिए इतने जटिल फॉर्म की कल्पना भी कर सकता है, जो इनकम टैक्स विभाग ने प्रस्तावित किया था?  केंद्रीय वित्त मंत्री  के सीधे दखल का कि विभाग अब एक नया फॉर्म बना रहा है।वैसे एक बात स्पष्ट कर देना ठीक रहेगा कि जनता ने मोदी को पांच साल के लिए प्रधानमंत्री चुना है इसलिए उनसे पूरा हिसाब-किताब आज ही मांगना उचित और तर्कसंगत नहीं है। आज अगर किसी बात का आकलन किया जा सकता है, तो वह है इस सरकार की दिशा, उसके द्वारा बनाई गई नीतियों से मिलने वाले संकेत और सरकार की नीयत के सबूत। दूसरी बात ये कि आजादी के बाद पहली बार दिल्ली में सरकार ही नहीं बदली बल्कि एक पूर्ण सत्ता परिवर्तन हुआ है, इसलिए पुराने मानकों और कसौटियों पर ही अगर आप इस एक साल को तौलेंगे तो शायद आप उतने सही न हों।वैसे इस सरकार ने एक साल में देश को अकर्मण्यता, निराशावाद और लचर प्रशासन के माहौल से बाहर तो निकाला है और इससे इसका बड़े से बड़ा आलोचक भी इनकार नहीं कर सकता।आमतौर से भाजपा और संघ के समर्थक माने जाने वाले कई लोग भी आजकल पीड़ा के दौर से गुजर रहे हैं। उन्हें लगता है कि सरकार आने पर उन्हें कुछ नहीं मिला। इनमें से कई को उम्मीद थी कि नए निजाम में ये नए पैरोकार हो जाएंगे, मगर ऐसा अभी तक नहीं हुआ है सो इनकी बेचैनी काफी बढ़ गई है। इनमें से ज्यादातर आपको कहते मिल जाएंगे 'ये सरकार तो कुछ कर ही नहीं रही।' या फिर 'ये तो वैसी ही सरकार है। इसमें नया कुछ नहीं है।' सरकार का सबसे बड़ा आलोचक यही बेचैन वर्ग है।मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि सत्ता के गलियारों से  ये बिचौलिए अब गायब हो गए हैं। शायद ये सबसे मुश्किल काम भी था। अब इन लोगों की सुनी जाए तो इस सरकार ने कुछ नहीं किया। ये मोदी के कुछ चुनावी जुमलों जैसे 'अच्छे दिन' वगैरह को अपने लेखों और टेलीविजन चर्चाओं में रबड़ की तरह खींचते हुए मिल जाएंगे।मगर सवाल है कि तो फिर असलियत क्या है? क्या पिछले साल में सब कुछ हरा-हरा ही रहा है? क्या मोदी ने चुनावी माहौल में जनमानस में अपेक्षाओं का जो ज्वार पैदा किया था,  उस पर वे खरे उतरे हैं?  सवाल कई हैं? और असलियत कहीं बीच में है।जमीनी स्तर पर कोई भी प्रभावी कार्य नहीं हो पाया है। । छह विपक्षी पार्टियों का विलय कराकर उन्हें 'जनता परिवार' के बैनर तले एकजुट कराने वालों में से एक जद-यू नेता ने कहा कि सरकार ने दो करोड़ अतिरिक्त रोजगार सृजन, प्रत्येक बेघर को घर और हर खेत को पानी देने का वादा किया था। लेकिन इनमें से कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि सरकार को केवल इरादे न जताकर गरीबी दूर करने, रोजगार सृजन और संकट में फंसे किसानों व गरीब व्यक्तियों की मदद के लिए एक स्पष्ट रोडमैप के साथ आना चाहिए और अपनी नीतियों को विस्तार से पेश करना चाहिए। मोदी के विदेश दौरों पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी हर वक्त विदेश यात्राओं में लीन हैं, लेकिन आज की तारीख में उन देशों से एक भी बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रस्ताव नहीं आया, जिन देशों का उन्होंने दौरा किया। शरद ने कहा कि उन्होंने अपने दौरों से विदेश भ्रमण संबंधी व ऐतिहासिक स्थलों के बारे में भारतीय मतदाताओं का सामान्य ज्ञान बढ़ाने के सिवाय किया ही क्या है।काले धन और लैंड बिल को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार को हर कदम पर घेरा है। किसानों की आत्महत्या का मुद्दा राहुल गांधी ने जोर शोर से उठाया। अब फूड पार्क पर भी राहुल सरकार को घेर रहे हैं। प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस देश भर में संदेश देना चाहती है कि मोदी सरकार के 1 साल में अभी तक अच्छे दिन नहीं आए हैं। किसान परेशान हैं और आत्महत्या कर रहे हैं पर सरकार इनकी सुध नहीं ले रही है। देश की सड़कों पर सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के इश्तेहार गए और सेल्फी की शक्ल में लाखों तस्वीरें सोशल नेटवर्किंग साइट्स की नुमाइश होने लगी। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इस अभियान के लिए कई बड़ी हस्तियों को नॉमिनेट भी किया। नतीजा, झाड़ू के साथ ऐसी तस्वीरें फैशन बन गईं, और स्वच्छ भारत मिशन देश की सबसे बड़ी जरूरत। सरकार का वादा था कि गांधी जी की 150वीं जयंती यानी 2019 तक देश को स्वच्छ बनाया जाएगा। 2015 तक 2 करोड़ शौचालय बनवाए जाएंगे। 2019 तक देश के 4041 शहरों में ठोस कचरा प्रबंधन का इंतजाम होगा और 2022 तक देश में खुले में शौच की समस्या पूरी तरह खत्म हो जाएगी।इस अभियान के ऐलान होते ही देश का हर शहर शंघाई बनने का सपना सजाने लगा। लेकिन अभियान के करीब एक साल बाद वो सपना थोड़ा धुंधला नजर आ रहा है। अफसोस कि दिल्ली की जिस गली से इस मिशन की शुरुआत हुई थी वही गली आज मिशन की हकीकत पेश कर रही है। वैसे ये भी सोचने की बात है कि जिस दिल्ली से स्वच्छ भारत का मिशन शुरु हुआ, जिस हिन्दुस्तान को 2019 तक साफ-सुथरा बनाने की कसम खाई गई वही दिल्ली इस साल दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर घोषित हुई। यही नहीं दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में छह शहर भारत के ही थे।
इस बात कोई शक नहीं कि स्वच्छ भारत मिशन देश की सबसे बड़ी जरूरत है। लेकिन एक सच ये भी है, कि इस मिशन की कामयाबी के लिए जिस खर्च की जरूरत है, वो फिलहाल मुमकिन नहीं दिखता।हालांकि पैसा जुटाने के लिए सरकार ने कई बड़ी पहल भी की हैं और सीएसआर के जरिए मिशन में कॉरपोरेट की भागीदारी के लिए भी सरकार ने नए रास्ते खोले हैं।
मोदी सरकार की ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना के लिए 100 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। जाहिर है एक साल में इस योजना का नतीजा तलाशना मुश्किल है। लेकिन सवाल ये भी है कि क्या 100 करोड़ में ये सबकुछ हो जाएगा।
आजाद हिंदुस्तान में यूं तो भ्रूण हत्या और कन्या शिक्षा पर कई योजनाएं शुरू हुईं। सैकड़ों करोड़ का बजट भी पास हुआ। लेकिन न हालात बदले न हकीकत बदली, मगर मोदी सरकार ने देश की सबसे बड़ी चुनौती के लिए एक बहुत बड़ी योजना का ऐलान किया।
ये योजना देश के 100 जिलों में एक साथ शुरू की गई। योजना के तहत भ्रूण हत्या रोकने के लिए अभियान की शुरुआत की गई। बेटियों की स्कूली शिक्षा के लिए जागरुकता मिशन चलाया गया। 10 साल तक की बेटियों के लिए सुकन्या समृद्धि योजना की शुरुआत की गई। इस योजना के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान भी रखा गया।
इस बड़ी योजना के लिए मोदी सरकार ने हरियाणा की जमीन चुना और अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को इस योजना का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया। अब सवाल ये उठता है कि आखिर इस योजना की जरूरत क्यों पड़ी, क्यों मोदी सरकार ने इस योजना की मिशन की तरह पेश किया। वजह है देश में लगातार घटता लिंगानुपात, 1991 की जनगणना के मुताबिक देश में 1000 लड़कों के मुकाबले सिर्फ लड़कियों का आंकड़ा 945 था। जो 2001 की रिपोर्ट में 927 तक पहुंचा और 2011 तक ये आंकड़ा 918 तक पहुंचा था।एक आंकड़ों को मजबूत बनाने के लिए मोदी सरकार ने कई बड़े जागरुकता अभियान को हरी झंडी दिखाई। फिल्मों, विज्ञापनों और इश्तेहारों के जरिए लोगों को बेटियों की अहमियत समझाई और अगले एक साल में लिंगानुपात के आंकड़े को 10 अंक ऊपर लाने का लक्ष्य तय हुआ।रही बात लड़कियों की शिक्षा की, तो यहां भी आंकड़े सरकार के लिए परेशान करने वाले थे। 2013 के आंकड़ों के मुताबिक दसवीं क्लास तक लड़कियों की साक्षरता दर सिर्फ 76 फीसदी थी। लेकिन मोदी सरकार एक साल में इसे 79 फीसदी लाना चाहती है।
सरकार और जनता के बीच संवाद जरूरी है। इसी जरूरत को देखते हुए मोदी सरकार ने भी एक नया कार्यक्रम शुरु किया। जिसका नाम है, मन की बात। मोदी के मन की बात, जनता के दिल तक कितनी पहुंची, ये बहुत बड़ा सवाल है। लेकिन एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक एक दिलचस्प आंकड़ा सामने आता है। वो ये कि इस कार्यक्रम से ऑल इंडिया रेडियो के अच्छे दिन आ चुके हैं क्योंकि सरकार ने इस कार्यक्रम के विज्ञापन के लिए ऑल इंडिया रेडियो को प्रति 10 सेकेंड के करीब दो लाख रुपए का भुगतान कर रही है। जबकि आमतौर पर ये रेट 500 से 1500 के बीच है।
कहते हैं रेडियो के जरिए जनता से संवाद का ये सिलसिला 1933 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट ने शुरू किया था। लेकिन हिंदुस्तान में संवाद का ये सिलसिला पहली बार शुरू हुआ। 3 अक्टूबर 2014 को पहली बार प्रधानमंत्री ने मन की बात के जरिए लोगों से सीधा संवाद किया। इस पहल के कई मकसद थे। पहला ये कि प्रधानमंत्री लोगों तक सीधे अपनी बात पहुंचा सकें। सरकार की नीतियां जनता के बीच पहुंच सकें। जनता को सरकार की योजनाओं की जानकारी मिले और मुश्किल वक्त में प्रधानमंत्री लोगों की हिम्मत बढ़ा सकें।
मन की बात कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। इसके लिए भी सरकार ने कई पहल शुरू की। मन की बात कार्यक्रम को स्कूली बच्चों तक पहुंचाया गया। सार्वजनिक स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित हुए।
अब तक प्रधानमंत्री 6 बार मन की बात के जरिए जनता के बीच अपनी आवाज पहुंचा चुके हैं। पहला कार्यक्रम 3 अक्टूबर 2014 को प्रासारित हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन, खादी कपड़े और देश में कामयाब मंगल मिशन पर बात हुई। 2 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री ने साक्षरता मिशन, स्वच्छ भारत अभियान, और भारतीय सेना के जवानों पर बात की। 14 दिसंबर 2014 को प्रधानमंत्री नशा मुक्ति के संदेश के साथ जनता के बीच पहुंचे। 27 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ दोनों देशों के रिश्तों पर बात की। 22 फरवरी 2015 को परीक्षा से पहले छात्रों को बड़ा पैगाम देने सामने आए। तो 22 मार्च 2015 को किसानों के मुद्दे और भूमि बिल पर संदेश देते सुनाई दिए।अब सवाल ये है कि आखिर मन की बात कार्यक्रम कितने लोगों तक पहुंचा। सरकारी आंकड़े की मानें तो मन की बात का पहला कार्यक्रम देश की 90 फीसदी जनता तक पहुंचाया गया। देश के छह बड़े शहरों में हुए सर्वे के मुताबिक करीब 66.7 फीसदी लोगों ने मोदी का कार्यक्रम सुना था।
पिछले एक साल में मोदी सरकार का एक और बड़ा फैसला था योजना आयोग की जगह नीति आयोग का गठन। एक साल में इस फैसला का नतीजा नहीं निकाला जा सकता। लेकिन एक सवाल जेहन में भी आता है कि आखिर इस फैसले की जरूरत क्यों पड़ी और क्या योजना आयोग के नीति आयोग बन जाने से बदलाव आ जाएगा। अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये फैसला क्यों लिया गया, योजना आयोग के वजूद पर सवाल इसलिए उठे, क्योंकि एक राज्य का कामयाब मॉडल दूसरे राज्य में लागू नहीं हो पाता था। सरकार के मुताबिक योजना आयोग ने आम आदमी के टैक्स का पैसा बचाने के ठोस कदम नहीं उठाए क्योंकि योजना आयोग में राज्यों को ज्यादा प्रतिनिधित्व नहीं मिला। ये भी कहा गया कि योजना आयोग परियोजनाओं में देरी को नहीं रोक पाया। मोदी सरकार के नीति आयोग की पहली बैठक के साथ ही एक नई तस्वीर देश के सामने आई। जबकि बैठक को टीम इंडिया का नाम दिया गया।
ये सवाल आपके जेहन में भी होगा कि आखिर योजना आयोग और नीति आयोग में फर्क क्या है। पंडित नेहरु का योजना आयोग पूरी तरह केंद्र के हाथों में था। लेकिन नीति आयोग में सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर राज्य सरकारों की भी भागीदारी शुरू की गई। योजना आयोग देश में विकास से संबंधित योजनाएं बनाता था। जबकि नीति आयोग में ग्राम इकाईयों से आने वाली सलाहों को भी शामिल किया गया है। योजना आयोग के अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री थे, लेकिन उनमें मुख्यमंत्रियों की कोई भूमिका नहीं थी, वहीं नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं लेकिन यहां मुख्यमंत्रियों की भी भागीदारी है। योजना आयोग में निजी क्षेत्रों की कोई हिस्सेदारी नहीं थी, जबकि नीति आयोग में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की भी बड़ी भूमिका है।साफ और सीधे लफ्जों में समझें तो नीति आयोग सरकार को विकास से संबंधित योजनाओं पर सलाह देगी। जिसमें राज्य सरकारों के साथ साथ निजी क्षेत्रों की भी भूमिका होगी। यानी नीति आयोग का पहला मकसद केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल है। तर्कों के आधार पर तो मोदी सरकार का ये फैसला सटीक दिखाई देता है। लेकिन ये आयोग देश के विकास में कितनी हिस्सेदारी निभा पाता है। ये वक्त ही बताएगा.

मदन मोहन सक्सेना