बुधवार, 22 अप्रैल 2015

मौत का मंजर

मौत का मंजर



कल शाम टी बी पर एक घटना देखी 
लाचार मजबूर किसान 
इस उम्मीद के साथ
तप्ति  धूप में
बृक्ष पर खड़ा होकर 
नेताओं के शब्दों को ध्यान से सुनता हुआ 
कि शायद अब उसके हालात बदल जाएँ
अचानक क्या हुआ 
कि उसे शब्द खोकले लगने लगे 
आशायें  चकनाचूर होते दिखने लगी 
नेताओं का असली स्वरुप नजर आने  लगा
और इस मिथ्या संसार को 
उसने अलबिदा करने का मन बना लिया 
सिस्टम ने एक किसान की जान ही नहीं ली 
अपितु 
इस घटना ने 
नेताओं की सम्बेदन हीनता को ही  उजागर नहीं किया 
बल्कि पुलिस का गैर जिम्मेदाराना ब्यबहार भी दिखा दिया 
तमाशबीन दर्शकों का असली चेहरा भी सामने ला दिया
धरती पुत्र किसान को भी ये अहसास भी  करा दिया 
कोई किसी की लड़ाई नहीं लड़ता है 
अपने बजूद को बचाने के लिए 
हर एक को खुद आगे आना होगा 
ना की मजबूर  होकर
आत्मघाती कदम उठाना। 


मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

चार धाम की यात्रा


आज से चार धाम की यात्रा की शुरुआत हो गयी है।  हिन्दू धर्म में चार धाम की यात्रा का बहुत महत्ब है. चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है।
 
यमुनोत्री

चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।


गंगोत्री

कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।



केदारनाथ

रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।









बदरीनाथ

नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।








विद्वानों ने चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
- See more at: http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-gangotriyamunotri-open-the-valve-which-began-the-journey-from-birth-to-salvation-12287178.html#sthash.RDukF5de.dpuf
विद्वानों ने चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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