हर लम्हा तन्हाई का एहसास मुझको होता है
जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है
क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत खून की दिखती
औरों का लहू बहता , तो सबके लिए पानी है
खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है
दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें हैं
हर गलती की कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है
मदन ,वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार पानी है
सल्तनत ख्वाबों की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है तो क्या , आखिर कल तो जानी है
मदन मोहन सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2016) को "हम किसी से कम नहीं" (चर्चा अंक-2325) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " श्रीनिवास रामानुजन - गणित के जादूगर की ९६ वीं पुण्यतिथि " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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