शुक्रवार, 20 मई 2016

क्या बतायें आपको हम अपने दिल की दास्ताँ





मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है  ..

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है ...

किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ....

दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है .....

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ......




 मदन मोहन सक्सेना  

1 टिप्पणी:

  1. मदन मोहन जी आपने गरीबों के दिलों कि दास्ताँ को बड़ी ही सुन्दरता के साथ अपनी रचना में वर्णन किया है......आपकी रचना में हकीकत झलकती है......ऐसी ही रचनाओं को आप शब्दनगरी
    के माध्यम से भी प्रकाशित कर अन्य लेखकों व पाठकों से साझा कर सकतें hai

    जवाब देंहटाएं