गुरुवार, 16 जून 2016

खुशबुओं की बस्ती




खुशबुओं  की   बस्ती में  रहता  प्यार  मेरा  है 

आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है 
उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा है
अब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है  

जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है 
प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहरा है 
प्यार तो है  सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है
रहमते खुदा की जिस पर सर उसके बंधे सेहरा है

प्यार ने तो जीबन में ,हर पल खुशियों को बिखेरा है
ना जाने ये मदन ,फिर क्यों लगे प्यार पे  पहरा है


काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 15 जून 2016

कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते है





दुनिया में जिधर देखो हजारो रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाए बो रास्ते नहीं मिलते


किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मिलते हाथ सबसे है दिल से दिल नहीं मिलते


करी थी प्यार की बाते कभी हमने भी फूलो से
शिकायत सबको उनसे है क़ी उनके लब नहीं हिलते


ज़माने की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ख्बाबो में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते


कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते है
मुश्किल अपनी ये की हकीक़त में नहीं मिलते


मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 13 जून 2016

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर

हर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश है
वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला


चार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलत
जब मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिला


नाज अपनी जिंदगी पर ,क्यों न हो हमको भला
कई मुद्द्दतों के बाद फिर अरमानों का पत्ता हिला


इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर
रफ्ता रफ्ता ढह गया, तन्हाई का अपना किला


वक़्त भी कुछ इस तरह से आज अपने साथ है
चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला


दर्द मिलने पर शिकायत ,क्यों भला करते मदन
जब दर्द को देखा तो दिल में मुस्कराते ही मिला



मदन मोहन सक्सेना