रविवार, 18 सितंबर 2016

फिर एक बार

फिर एक बार 




फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला 
फिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए 
फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ  को खोने का दंश झेला 
फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा किया
फिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी 
फिर एक बार 
सभी दलों ने घटना की निंदा की 
फिर एक बार मीडिया में चर्चा हुयी 
फिर एक बार 
प्रधान मंत्री ने देश को भरोसा दिलाया कि  गुनाहगार को बख्शा नहीं जायेगा 




मदन  मोहन सक्सेना



मंगलवार, 6 सितंबर 2016

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १२ ,सितम्बर २०१६ में प्रकाशित



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,
बर्ष -२ , अंक १२  ,सितम्बर  २०१६ में प्रकाशितहुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .

















अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में 
ख्बाबों  में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं  

भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर
सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं  

महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं  

ये उसकी बदनसीबी गर ,नहीं तो और फिर क्या है
जिसने पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा गम ही झेले हैं  
 
मुश्किल यार ये कहना  किसका अब समय कैसा
समय से कौन जीता है समय ने खेल खेले हैं। 


मदन मोहन सक्सेना