शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

मुक्तक





ख़यालों  में  बो मेरे आते भी हैं
रातो को नीदें   चुराते   भी हैं 
कहतें नहीं राज दिल का  बह  हमसे  
चोरी से    नजरे  मिलातें  भी हैं


मुक्तक प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

कोयले की कालिख और जनता






















एक के बाद एक सामने आते भ्रष्टाचार के मामलों पर सरकार और विपक्ष में खींचातानी फिर शुरु हो गई है. विपक्ष ने सरकार को घेरने के लिए संसद की कार्रवाई ठप्प कर दी है लेकिन सरकार का कहना है कि विपक्ष खुद संसद का मज़ाक बना रहा है.
इन कथित घोटलों से भारत की अर्थव्यवस्था को लाखों करोड़ों का नुकसान पहुंचा है लेकिन संसद की कार्रवाई न चले तो भी नुकसान उस आम आदमी का ही है जिसके लिए बनने वाले ज़रूरी कानून ठंडे बस्ते में पड़े हैं और अहम मुद्दों पर फैसले टलते जा रहे हैं. आज के समय में न ही सत्ता पक्ष अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन कर रहा है और न ही विपक्ष. सत्ता पक्ष ने भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं पार कर दी हैं और विपक्ष ने भी. आज चाहे सत्ता पक्ष के नेता हों या विपक्ष के दोनों को सिर्फ अपनी जेब दिखाई देती है. देश या देश की आम जनता से दोनों का ही कोई लेना-देना नहीं है.
कांग्रेस गद्दी बचाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद - सभी नुस्खे इस्तेमाल करती है और अपनी सरकार बचा लेती है. उसके बाद फिर से घोटालों की सिलसिला शुरू हो जाता है. अब तो ये भी लगने लगा है कि विदेशी ताकतों का भी समर्थन कांग्रेस को प्राप्त है. रहा आम आदमी का सवाल तो इन घोटालों में पैसा तो आमलोगों का ही लगा है. संसद नहीं चलने पर जनता के पैसों का जो हिसाब कर रहे हैं उन्हें लूट के पैसों का हिसाब पता नहीं है?
राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए संसद स्थगित कर वाहवाही लूट रहे हैं और दूसरी तरफ घोटाले पर घोटाला कर धन बटोर रहे हैं. दोनों तरफ से नुकसान जनता को ही है. लेकिन जनता करे तो करे क्या? अग्रेजों की नीति थी-"फूट डालो, राज करो." वही हाल आज भी हो गया है. राजनीतिक दल चाहते हैं कि जनता में कभी एक मत न हो.
भ्रष्टाचार के दलदल में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही डूबे हुए हैं. भाजपा प्रधानमंत्री का इस्तीफा इसलिए मांग रही है ताकि चुनाव हो जाए, साथ ही कोयला ब्लॉक आवंटन में उनके भी हाथ काले हैं तो कहीं पोल न खुल जाए. दोनों ही दल अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं. जनता जाए भाड़ में उन्हें इसका कोई मतलब नहीं है.
संसद में बहस का क्या स्वरूप होता है और उसकी परिणति क्या होती है यह हम सब जानते हैं. कोलगेट का आकार विशाल है. सरकार सिर्फ चर्चा और जांच के बहाने बनाकर नहीं बच सकती. पिछले सत्र में जेपीसी की मांग पर भी सरकार अड़ गयी ऐसे में विपक्ष क्या करे. संसद नहीं चलने से नुकसान तो है पर कोलगेट के सामने ये कुछ भी नहीं. संसद का मजाक विपक्ष नहीं सरकार का अड़ियल रुख और उसकी अकर्मण्यता बना रही है.
देश का दुर्भाग्य है कि एक के बाद एक घोटाले होने के बाद भी हम इस बात में उलझे हैं कि किस राजनीतिक दल को कितना फायदा हो रहा है. अब तो पानी सिर के ऊपर से बह रहा है और सरकार और उसके प्रधानमंत्री सफाई देने का नैतिक अधिकार भी खो चुके हैं. सरकार सिर्फ अपनी करनी पर पर्दा डालने में लगी है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो देश की पूरी राजनीति गंदी हो जाएगी और इस सिस्टम से निकलने वाला हर कोई भ्रष्ट होगा. अब देश में एक नए बदलाव की ज़रूरत है जो देश को नई दिशा दे सके.
संसद में जो हो रहा है वो सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच की नूरा-कुश्ती के अलावा और कुछ नहीं. देश की आम जनता जहाँ संसद से यह अपेक्षा करती है कि वह विचार-विमर्श के ज़रिए समस्याओं का हल तलाशेगी. वहीं पक्ष और विपक्ष ने सांसद को रोकने की चाल खोज रखी है. हैरानी तो तब होती है जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपनी पार्टी के लोगों को यह निर्देश देती हैं कि वे भाजपा के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाएं. क्या यही आक्रामक निर्देश वो मनमोहन और उनकी टीम को आए दिन हो रहे घोटालों के मामले में नहीं दे सकतीं.
आम आदमी महंगाई से जूझ रहा है, चीनी 40 रुपये किलोग्राम खुदरा दुकानों में बिक रही है. रसोई गैस के दाम बढ़ने वाले हैं. पेट्रोल डीजल के दाम आधी रात को नींद तोड़ देते हैं. अन्ना को लोकपाल चाहिए, रामदेव जी को काला धन देश में लाने की चिंता है. बेनी प्रसाद महंगाई को सही बता रहे हैं. भाजपा कोयला घोटाले पर प्रधान मंत्री से इस्तीफा मांग रही है. आम आदमी शून्य में निहार रहा है. किसी मुद्दे पर निर्णायक लड़ाई नहीं हो रही है. सब गोलमाल है, भाई सब गोलमाल है. संसद महंगाई के मुद्दे पर भंग की जानी चाहिए. यह मांग कोई नहीं कर रहा. ये सारे नेता एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. कुर्सी मिलने के बाद इन्हें सिर्फ अपना ही स्वार्थ याद रहता है और देश और जनता के बारे में भूल जाते हैं. जबतक इस देश में एक सख्त न्याय प्रणाली नहीं बनेगी तब तक बार-बार भ्रष्टाचार अपनी जड़ों को और मज़बूत करता रहेगा. रोज़ नए घोटाले होते रहेंगे. अखबारों के पन्ने काली स्याही से भरते रहेंगे. सत्ता पक्ष राजनीति कर रहा है, ये ज़रूरी भी है. मगर सवाल ये है कि आखिर वो कौन सी पार्टी है जो लोकहित की बात संसद में कर रही है. हर पार्टी सत्ता में आते ही देश को लूटने में लग जाती है. सीएजी तो अपना काम पूरी ईमानदारी से करता है मगर उसकी रिपोर्टों को अमली जामा पहनाने का क़ानूनी हक़ मिलना चाहिए. सीएजी ने पहले भी साबित किया है कि कैसे राष्ट्रमंडल खेलों में एक लाख 76 हज़ार करोड़ का घोटाला हुआ था. बीजेपी का रास्ता बिल्कुल सही है. कांग्रेस केवल सदन में चर्चा करवा कर पूरे मामले की इतिश्री करना चाहती है. चर्चा की ज़रूरत तब होती है जब जनता को इस पूरे मामले के बारे में पता न होता. पहले से बने क़ानूनों का ही सरकार मज़ाक बना रही है तो नए क़ानूनों का जनता क्या अचार डालेगी. तथाकथित साफ़ छवि वाले मनमोहन सिंह को भारत का प्रधानमंत्री बने रहने का कोई हक़ नहीं. मुंबई हमले, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, देवास अंतरिक्ष घोटाला, टू जी घोटाला, कोयला घोटाला - इतने घोटालों के बाद भी किसी सरकार का मुखिया ईमानदार कैसे कहला सकता है? भ्रष्टाचार के महासमर में हर दल अपने अपने फायदे और नुकसान की गिनती में लगा है और बेचारी देश की जनता दो पाटो के बीच पिस रही है.


जिसे जब भी  मिला मौका किसी भी दल का होने दो 
तिजोरी अपनी भर ली है ,वतन को यार लूटा है ..

कोई तो खा गया चारा , कोयला खा गया कोई 
भरोसा हुक्मरानों से नहीं ऐसे ही टूटा है ..

धन है सम्पदा यहाँ है कमी इस देश में क्या है 
नियत की खोट कि खातिर मुकद्दर आज रूठा है


कोयले की कालिख और जनता 

सोमवार, 3 सितंबर 2012

दर्द










 


हर सुबह  रंगीन   अपनी  शाम  हर  मदहोश है
वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला

चार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलत
मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिला

नाज अपनी जिंदगी पर क्यों न हो हमको भला
कई मुद्द्दतों के बाद फिर  अरमानो का पत्ता हिला

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर
रफ्ता रफ्ता ढह गया, तन्हाई का अपना किला

वक़्त भी कुछ इस तरह से आज अपने साथ है
चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला

दर्द मिलने पर शिकायत ,क्यों भला करते मदन
जब  दर्द को देखा तो  दिल में मुस्कराते ही मिला

 

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 2 सितंबर 2012

ग़ज़ल
















कभी गर्दिशो से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ..

इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे .
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आखो से माय पीने लगे मानो की मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान है हम आज अपने हाल से
हमसे बोला आईना ये शख्स बेगाना हुआ

ढल नहीं जाते है लफ्ज़ यूँ ही  रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया कभी ग़ज़ल का पाना हुआ


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना 







बुधवार, 29 अगस्त 2012

खुद से अनजान
















जानकर अपना तुम्हे हम हो गए अनजान  खुद से
दर्द है क्यों  अब तलक अपना हमें  माना  नहीं  नहीं है

अब सुबह से शाम तक बस नाम तेरा है लबो पर
साथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं है

गर कहोगी रात को दिन ,दिन लिखा  बोला करेंगे
गीत जो तुमको न भाए बो हमें गाना नहीं है

गर खुदा भी रूठ जाये तो हमें मंजूर होगा
पास बो अपने बुलाये तो हमें जाना नहीं है

प्यार में गर मौत दे दें तो हमें शिकबा नहीं है
प्यार में बो प्यार से कुछ भी कहें  ताना नहीं  है




प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 27 अगस्त 2012

करिश्मा कुदरत का




















कुदरत का करिश्मा गर नहीं तो और फिर क्या है
कहीं पानी के लाले है  कहीं पानी ही पानी है                                 करिश्मा


किसी के पास खाने को मगर  बह खा  नहीं सकता
इन्सां की बिबश्ता की अजब देखो  कहानी है                                 बिबश्ता




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 












गुरुवार, 23 अगस्त 2012

भरोसा

 




जिसे जब भी  मिला मौका किसी भी दल का होने दो 
तिजोरी अपनी भर ली है ,वतन को यार लूटा है ..

कोई तो खा गया चारा , कोयला खा गया कोई 
भरोसा हुक्मरानों से नहीं ऐसे ही टूटा है ..

धन है सम्पदा यहाँ है कमी इस देश में क्या है 
नियत की खोट कि खातिर मुकद्दर आज रूठा है 


प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना  




गुरुवार, 16 अगस्त 2012

हिंसा का खेल



असम के कुछ इलाकों में फिर से हिंसा का खेल शुरू हो गया है .राज्य सरकार और केंद्र अपनी मजबूरियों का रोना रो रही है . सोनिया जी और मनमोहन जी असम में रस्म अदायगी कर आये है और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया न जाने किसके दबाब में अपनी जिम्मेदारी से मुहँ चुरा रहा है . जनता को तो अपनी पेट की भूख शांत करने से  फुर्सत ही नहीं मिलती की कुछ विचार कर सके  और जिनकी जिम्मेदारी है बो लाशों में बोट तलाशने की जुगत कर रहें है। 











क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
सबने  खुद को पाया है क्यों  खुदगर्जी के घेरे में

एक जमी बक्शी थी कुदरत ने हमको यारो लेकिन
हमने सब कुछ बाट दिया मेरे में और तेरे में

आज नजर आती मायूसी मानबता के चेहरे पर
अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में

बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

रविवार, 12 अगस्त 2012

आजादी और हम





























दो चार बर्ष की बात नहीं अब अर्ध सदी गुज़री यारों 
हे भारत बासी मनन करो क्या खोया है क्या पाया है 

गाँधी सुभाष टैगोर  तिलक ने जैसा भारत सोचा था 
भूख गरीबी न हो जिसमें , क्या ऐसा भारत पाया है 


क्यों घोटाले ही घोटाले हैं और जाँच चलती रहती 
पब्लिक भूखी प्यासी रहती सब घोटालों की माया है 

अनाज भरा गोदामों में और सड़ने को मजबूर हुआ 
लानत है ऐसी नीती पर जो भूख मिटा न पाया है 

अब भारत माता लज्जित है अपनों की इन करतूतों पर 
राजा ,कलमाड़ी ,अशोक को क्यों जनता ने अपनाया है। 


प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना  

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

कृष्ण कन्हैया



अब तो आ कान्हा  जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए 
 दुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज क्यों  अभिशप्त हुए 

नन्द दुलारे कृष्ण कन्हैया  ,अब भक्त पुकारे आ जाओ 
प्रभु दुष्टों का संहार करो और  प्यार सिखाने आ जाओ 

मदन मोहन सक्सेना