गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

दिल के पास



दिल के पास


 
दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।

 
किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपने
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।


जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और वोने का ये खेल जिंदगी।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

जुमले , जनता और जनतंत्र


जुमले , जनता और जनतंत्र



शैतान 
ब्रह्मपिशाच 
आरक्षण 
जातिबाद
चारा चोर 
नर भक्षी 
डी एन  ए 
जैसे 
जुमलों के बीच 
आम  आदमी 
बिकास 
गरीबी 
मँहगाई 
भृष्टाचार 
जैसे सामायिक मुद्दे 
अचानक परिदृश्य से गायब से हो गए 
अब आज चुनाब के प्रथम चरण में 
बिहार की जनता को 
निर्णय करना है 
कि वे किसके साथ हैं 
और कौन उनकी 
अपेक्षायें पूरी कर सकता है। 

 
मदन मोहन सक्सेना


गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

गाँधी , अहिंसा और हम






कल गाँधी  जयन्ती है यानि २  अक्टूबर . शत शत नमन बापू आपको एक सवाल कि हम सब कितने बापू के कहे रास्तों पर चल रहे है या फिर रस्म अदायगी करके ही अपना फ़र्ज़ निभाते रहेंगें। 



गाँधी , अहिंसा और हम


कल शाम जब हम घूमने जा रह रहे थे
देखा सामने से गांधीजी आ रहे थे
नमस्कार लेकर बोले, आखिर बात क्या है?
पहिले थी सुबह अब रात क्या है!
पंजाब है अशान्त क्यों ? कश्मीर में आग क्यों?
देश का ये हाल क्यों ?नेता हैं शांत क्यों ?
अपने ही देश में जलकर के लोग मर रहे
गद्दी पर बैठकर क्या बे कुछ नहीं कर रहे
हमने कहा नहीं ,ऐसी बात तो नहीं हैं
कह रहा हूँ जो तुमसे हकीकत तो बही है
अहिंसा ,अपरिग्रह का पालन बह कर रहें
कहा था जो आपने बही आज बह कर रहे
सरकार के मन में अब ये बात आयी है
हथियार ना उठाने की उसने कसम खाई है
किया करे हिंसा कोई ,हिंसा नहीं करेंगें हम
शत्रु हो या मित्र उसे प्रेम से देखेंगे हम
मार काट लूट पाट हत्या राहजनी
जो मर्जी हो उनकी, अब बह चाहें जो करें
धोखे से यदि कोई पकड़ा गया
पल भर में ही उसे बह छोड़ा करें
मर जाये सारी जनता चाहें ,उसकी परवाह नहीं है
चाहें जल जाये ही ,पूरा भारत देश अपना
हिंसा को कभी भी स्थान नहीं देते
अहिंसा का पूरा होगा बापू तेरा सपना
धन को अब हम एकत्र नहीं करते
योजना को अधर में लटका कर रखते
धन की जरुरत हो तो मुद्राकोष जो है
भीख मांगने की अपनी पुरानी आदत जो है
जो तुमने कहा हम तो उन्हीं पर चल रहे
तेरे सिधान्तों का अक्षरशा पालन कर रहे
आय जितनी अपनी है, खर्च उससे ज्यादा
धन एकत्र नहीं करेंगें ,ये था अपना  वादा


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

सोमवार, 28 सितंबर 2015

ये क्या दुनिया बनाई है


ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला)

मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये

तेरी दुनियां में कुछ बंदें करते काम क्यों गंदें
कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जायें

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये

ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये



मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 13 सितंबर 2015

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़लयुबा सुघोष ,बर्ष -३ , अंक १ , मार्च  २०१४  में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .









कैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें बतन मेरे बो आ जाये

तिजोरी में भरा धन है मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी भुखमरी में क्यों जीबन बीतता जाये

ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें .

कभी बाटाँ धर्म ने है कभी जाति में खो जाते
हमारें रहनुमाओं  का, असर सब पर नजर आये

ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा तंत्र है यारों , ये जल्दी से गुजर जाये


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष में

 प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष , बर्ष -३ , अंक 3  , मई  २०१४ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .

 


















जानकर अपना तुम्हे हम हो गए अनजान खुद से
दर्द है क्यों अब तलक अपना हमें माना नहीं नहीं है


अब सुबह से शाम तक बस नाम तेरा है लबो पर
साथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं है


गर कहोगी रात को दिन ,दिन लिखा बोला करेंगे
गीत जो तुमको न भाए बो हमें गाना नहीं है


गर खुदा भी रूठ जाये तो हमें मंजूर होगा
पास बो अपने बुलाये तो हमें जाना नहीं है


प्यार में गर मौत दे दें तो हमें शिकबा नहीं है
प्यार में बो प्यार से कुछ भी कहें ना नहीं है


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना






मंगलवार, 25 अगस्त 2015

हम ऐतवार कर लेगें




हम ऐतवार कर लेगें

बोलेंगे जो भी हमसे वह  ,हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें

बह मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी हैं 
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार वह हमको
गर अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें


मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

सब सिस्टम का रोना रोते


सुबह हुयी और बोर हो गए
जीवन में अब सार नहीं है

रिश्तें अपना मूल्य खो रहे
अपनों में वो प्यार नहीं है

जो दादा के दादा ने देखा
अब बैसा संसार नहीं है

खुद ही झेली मुश्किल सबने
संकट में परिवार नहीं है

सब सिस्टम का रोना रोते
खुद बदलें ,तैयार नहीं है

मेहनत से किस्मत बनती हो
मदन आदमी लाचार नहीं है



मदन मोहन सक्सेना


शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

उसे हम बोल क्या बोलें

उसे हम बोल क्या बोलें


उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें

जीवन के सफ़र में जो मुसीबत में भी अपना हो
राज ए दिल मोहब्बत के, उसी से यार खोलेंगें

जब अपनों से और गैरों से मिलते हाथ सबसे हों
किया जिसने भी जैसा है , उसी से यार तोलेंगें

अपना क्या, हम तो बस, पानी की ही माफिक हैं
मिलेगा प्यार से हमसे ,उसी  के यार होलेंगें

जितना हो जरुरी ऱब, मुझे उतनी रोशनी देना 
हम अँधेरे में भी डोलेंगें और उजालें में भी डोलेंगें 

प्रस्तुति
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक १० ,जुलाई २०१५ में



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक १०    ,जुलाई २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .




                             


 ग़ज़ल (मुसीबत यार अच्छी है)


 

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना  दिल  अभी भी तो मचलता है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

ग़ज़ल (मुसीबत यार अच्छी है)
 

मदन मोहन सक्सेना